श्रीमद्भगवद्गीता शंकरभाष्य हिन्दी पुस्तक | Srimad-Bhagavad-Gita Shankar Bhashya Hindi PDF

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श्रीमद्भगवद्गीता शंकरभाष्य हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Srimad-Bhagavad-Gita Shankar Bhashya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: श्रीमद्भगवद्गीता शंकरभाष्य | इस पुस्तक के संपादक/अनुवादक हैं : पूज्यश्री हरिकृष्णदास गोयन्दका जी | पुस्तक का प्रकाशन किया है : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 36 MB हैं | पुस्तक में कुल 529 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Srimad-Bhagavad-Gita Shankar Bhashya. This book is edited/translated by: Pujyashri Harikrishnadas Goyandka ji. The book is published by: Gita-Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 36 MB. This book has a total of 529 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पूज्यश्री हरिकृष्णदास गोयन्दका जीभक्ति, धर्म36 MB529



पुस्तक से : 

परमकल्याण ही जिनका प्रयोजन है, ऐसे इन दो प्रकारके धर्मोको और लक्ष्यभूत वासुदेवनामक परब्रह्मरूप परमार्थतत्त्वको विशेषरूप से अभिव्यक्त (प्रकट) करनेवाला यह गीताशास्त्र, असाधारण प्रयोजन, सम्बन्ध और विषयवाला है। ऐसे इस (गीताशास्त्र) का अर्थ जान लेने पर समस्त पुरुषार्थोंकी सिद्धि होती है, अतएव इसकी व्याख्या करने के लिये में प्रयत्न करता हूँ ।

 

संक्षेपमें इस गीताशास्त्रका प्रयोजन परमकल्याण अर्थात् कारणसहित संसारकी अत्यन्त उपरति हो जाना है, वह (परमकल्याण) सर्वकर्मसंन्यास पूर्वक आत्मज्ञाननिष्ठारूप धर्मसे प्राप्त होता है। इसी गीतार्थरूप धर्मको लक्ष्य करके स्वयं भगवानने ही अनुगीतामे कहा है कि 'ब्रह्मके परमपदको (मोक्षको) प्राप्त करने के लिये वह (गीतोक्त ज्ञान निष्ठारूप) धर्मही सुसमर्थ है।

 

 

जीवात्मा परमात्मामे जो भेद मालूम होता है वह प्रकृतिके कारणसे है । इस भ्रान्तिकी निवृत्ति ज्ञान द्वारा होती है। द्वैत जो भासता है उसका कारण माया है और वह माया अनिर्वचनीया है । न तो वह सत् है और न असत् है और दोनोंहीके धर्म उसमे भासते है। इसीलिये उसको 'अनिर्वचनीया' विशेषण दिया गया है । वास्तवमें माया भी मिथ्या है । क्योकि सत् से असत् की उत्पत्ति सम्भव नहीं और सत्-असत्का मेल भी सम्भव नहीं और असत्मे कोई शक्ति ही नहीं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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