वृहत तंत्र सार पुस्तक | Vrihad Tantra Sara Book PDF

 

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वृहत तंत्र सार हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vrihad Tantra Sara Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : वृहत तंत्र सार | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री कृष्णानंद आगमवागीश. इस पुस्तक के संपादक हैं : राम कुमार राय. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : प्राच्य प्रकाशन, वाराणसी. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 223 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 565 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Vrihad Tantra Sara | This book is written by : Shri Krishnanand Agamavagish. This book is edited by : Ram Kumar Rai. This book is published by : Prachya Prakashan, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is: 223 MB. This book has a total of 565 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री कृष्णानंद आगमवागीशधर्म, भक्ति223 MB565


पुस्तक से :

प्रधानतः तन्त्रशास्त्रके तीन भेद है आगम, यामल और तन्त्र. सृष्टि, प्रलय, देवताओंकी पूजा का साधन, पुरश्चन, षट्कर्मसाधन और चार प्रकार का ध्यानयोग- जिसमें से सात प्रकार के लक्षण हों उसको आगम कहते हैं। सृष्टितव, ज्योतिषका वर्णन, नित्यकर्म, कमसूत्र, वर्णभेद, जातिभेद और युगधर्म- यह आठ यामल के लक्षण है। विभिन्न कमों के निमित्त श्रीमहादेवने इस तत्वशास्त्रको भिन्न-मित्र रूप से एवं भिन्न-मित्र खण्डों में विभक्त किया है जिनका विभिन्न तत्व ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।

 

इसी तंत्रशास्त्रके प्रभावसे पूर्वकाल में मनुष्य, ऋषि-मुनि और देवताओंने अनेक प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त की थी। निर्धनको धन, निःसन्तानको सन्तान अज्ञानीको ज्ञान रोगीको आरोग्य आदि सभी फल इसी शास्त्र के अधीन है। कलियुगमें तो सिद्धियाँ और कामनायें केवल तन्त्रशास्त्रद्वारा ही प्राप्त हो सकती हैं।

 


इस ग्रन्थ में जितने देवी देवताओंकी साधना-विधियों का उल्लेख है उतना अन्यत्र एकत्र कहीं नहीं मिलता। साथ ही अभिचार, षट्कर्म, वीरसाधन, शवसाधनादि पर भी अत्यन्त विस्तार से वर्णन मिलता है। फिर भी आज तक इस ग्रन्थ का नागरी लिपि में संस्करण नहीं प्रकाशित हो सका था। अतः अनेक विद्वानोंके आग्रह और परामर्श पर हम व्ययसाध्य होते हुए भी इस ग्रन्थ को नागरी लिपि में प्रस्तुत कर रहे हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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