देवांगना (आचार्य चतुरसेन) हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Devangana (Acharya Chatursen) Book PDF

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(चित्र केवल प्रतीकात्मक)


देवांगना (आचार्य चतुरसेन) पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Devangana (Acharya Chatursen) Book

इस पुस्तक का नाम है: देवांगना | इस ग्रन्थ के रचनाकार हैं: आचार्य चतुरसेन | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB हैं | पुस्तक में कुल 104 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Devangana | This book is written by : Acharya Chatursen. Approximate size of the PDF file of this book is : 1 MB. This book has a total of 104 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य चतुरसेन
साहित्यउपन्यास 1 MB104



पुस्तक से :

वैसा ही मनोरम प्रभात था. दिवोदास उसी पुष्करिणी के तीर पर उसी वृक्ष की छाया में बैठा निर्मल जल में खेलती लहरों को देख रहा था. वह कोई गीत गा रहा था. उसने प्रेमविभोर हो आप-ही-आप कहा: प्रेम-प्रेम-प्रेम, प्रेम के स्मरण से ही आत्मा कैसी हरी हो जाती है. हृदय में हिलोरे उठती हैं, जैसे नये प्राण शरीर में आ गये हो. वह जैसे प्रत्यक्ष मंजू की रूप-माधुरी को देखने लगा.

 

उसके मुँह से निकला - "वाह, कैसी रूप-माधुरी है, कैसी चितवन है, वीणा झंकार के समान उसकी स्वर-लहरी रक्त की बूंदों को उन्मत्त कर डालती है. परन्तु खेद है मुझे और कदाचित उसे भी इस विषय पर चिंतन करने का अधिकार नहीं है. मैं भिक्षु हूं और वह देवदासी. मेरे लिए संसार मिट्टी का ढेला है, और उसके लिए अंधेरा कुआँ".

 

वह कुछ देर चुपचाप एक-टक लहरों को देखता रहा. फिर उसने आप ही असंयत होकर कहा - "क्या यही धर्म है? परन्तु इस धर्म का तो जीवन के साथ कोई सहयोग नहीं दीखता? वह धर्म कैसा? जो जीवन से दूर है - जीवन का विरोधी है, जो जीवन का पातक है. नहीं, नहीं वह धर्म नहीं है - पाखंड है. प्यार ही सब धर्म से बढ़कर धर्म है."


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