एक दुनिया समानान्तर हिन्दी पुस्तक | Ek Duniya Samanantar Hindi Book PDF

                              

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एक दुनिया समानान्तर हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ek Duniya Samanantar Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: एक दुनिया समानान्तर | इस पुस्तक के लेखक हैं : राजेंद्र यादव |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 20 MB हैं | पुस्तक में कुल 410 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Ek Duniya Samanantar. This book is written by: Rajendra Yadav. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 20 MB. This book has a total of 410 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
राजेंद्र यादव कहानी,साहित्य20 MB410



पुस्तक से : 

यहाँ अपनी पहली बात को दुहराकर ही आगे चलना होगा कि जहाँ तक अनुभूतियों का प्रश्न है, एक और विवेक की कमी इस वर्ग को दूसरे वर्ग से कर देती है। हर व्यक्ति को अपनी अनुभूतियाँ अछूत और नयी लगती हैं - उन्हीं का अान्तरिक दवाव अभिव्यक्ति के लिए कलाकी कोई विद्या खोजने को प्रेरित करता है। लेकिन जीवन, या अधिक सही कहा जाय तो, परिवेश के सम्पर्क के बिना ये अनुभूतियाँ वैयक्तिक, व्यक्तिगत, अकेली, आत्यन्तिक और विलक्षण होती हैं और इस इकलौतेपन को ही यह आत्म-सजग, सेल्फ़-कान्शस, प्राणी, महत्त्वपूर्ण और ताजा भी मान लेता है । चूँकि कहानी में अनुभूतियों को जीवन बिम्बों में ही पाना होता है, इसलिए समय-समाज-परिवेश से बँधे रहकर ही ये व्यक्ति अनुभूतियाँ महत्त्वपूर्ण श्रीर ताजा हो सकती हैं।

 

सच बात तो यह है कि यह में तुझी से कह सकता हूं, इसलिए कि तू बहन भी है और समझदार भी ये मदर फादर को क्या हो गया है ? हम लोग इतने इतने वरसों बाद आये, लेकिन लगा जैसे किसीको खुशी ही नहीं हुई। सारा वक्त पापा उखड़ी-उखड़ी बातें करते रहे और मां का मुंह सूजा रहा। मैं तो खैर घर का हूँ, शिकायत करके भी कहाँ जाऊँगा! रत्ना के दिल को इससे बड़ा धक्का लगा है। कह रही थी कि इतनी भावना से लाये हुए प्रेजेण्ट्स किसीने एप्रिसियेट तक नहीं किये । पापा ने तो कोट को छूकर भी नहीं देखा। तू अगर उसे बातों ही बातों में यह विश्वास दिला दे कि उन प्रेजेण्ट्स से घर-भर के लोगों को कितनी खुशी हुई है तो ..

 

 

मुंशीजी ने चिट्ठी आगे बढ़ायी, कनगुरिया फिर हिली, पतंगे की तरह फड़फड़ानी चिट्ठीको पंजे में दबोचकर नन्हीं सहश्राइन पीछे हटी और दरवाज़ेको भटके से भेड़ लिया। आंगनके कोने में पानी रखने के चबूतरे के पास खड़ी होकर उन्होंने चिट्ठीको पढ़ा। रामसुभग आ रहा है, लिखा था चिट्ठी में । केवल तीन सतर की इबारतथी पूरी | पर नन्हीं के लिए उसके एक-एक अक्षरको उचारने में पहाड़-सा समय लग गया जैसे । चबूतरे के पास कलसी के नीचे, पानी गिरने से ज़मीन नम हो गयी थी, जो के बीज गिरे थे जाने कब के । इकट्ठे एक में सटे हुए उजले-हरे श्रंखुवे फूटे थे ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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