गजेंद्र मोक्ष (गीता प्रेस) हिन्दी पुस्तक | Gajendra Moksha (Gita-Press) Hindi PDF

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गजेंद्र मोक्ष हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gajendra Moksha Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: गजेंद्र मोक्ष | यह प्रसंग श्रीमदभागवत के अष्टम स्कन्द से लिया गया है. पुस्तक के प्रकाशन हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | पुस्तक के हिन्दी टीकाकार हैं : श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 5 MB हैं | पुस्तक में कुल 36 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Gajendra Moksha. This composition is taken from 8th Skanda of Srimad-Bhagavat. This book is published by: Gita-Press, Gorakhpur. Hindi translation is done by Shri Hanuman Prasad Poddar. Approximate size of the PDF file of this book is 5 MB. This book has a total of 36 pages.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुरधर्म, भक्ति5 MB36



पुस्तक से : 

श्रीमद्भागवतके अष्टम स्कन्धमें गजेन्द्रमोक्ष की कथा है। द्वितीय अध्याय में ग्राहके साथ गजेन्द्रके युद्धका वर्णन है, तृतीय अध्याय में गजेन्द्रकृत भगवान्‌के स्तवन और गजेन्द्रमोक्षका प्रसङ्ग है और चतुर्थ अध्यायमें गज ग्राहके पूर्वजन्मका इतिहास है। श्रीमद्भागवतमें गजेन्द्रमोक्ष आख्यान के पाठका माहात्म्य बतलाते हुए इसको स्वर्ग तथा यशदायक, कलियुगके समस्त पापोंका नाशक, दुःस्वप्ननाशक और श्रेयःसाधक कहा गया है। तृतीय अध्यायका स्तवन बहुत ही उपादेय है। इसकी भाषा और भाव सिद्धान्तके प्रतिपादक और बहुत ही मनोहर हैं। भावके साथ स्तुति करते-करते मनुष्य तन्मय हो जाता है।

 

स्वयं भगवान्‌का वचन है कि 'जो रात्रिके शेषमें (ब्राह्ममुहूर्त के प्रारम्भ में) जागकर इस स्तोत्रके द्वारा मेरा स्तवन करते हैं, उन्हें मैं मृत्युके समय निर्मल मति (अपनी स्मृति) प्रदान करता हूँ।' और 'अन्ते मतिः सा गतिः' के अनुसार उसे निश्चयही भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है तथा इस प्रकार वह सदाके लिये जन्म-मृत्युके बन्धनसे छूट जाता है।

 

 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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