ज्ञानयोग (स्वामी विवेकानंद) हिन्दी पुस्तक | Gyan-Yog (Swami Vivekanand) Hindi Book PDF

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ज्ञानयोग (स्वामी विवेकानंद) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gyan-Yog (Swami Vivekanand) Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: ज्ञानयोग | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी विवेकानंद | इस पुस्तक का प्रकाशन श्रीरामकृष्ण आश्रम नागपुर, मध्य प्रदेश ने किया है. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 10.5 MB हैं | पुस्तक में कुल 340 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Gyan-Yog. This book is written by: Swami Vivekanand. This book is published by Shriramkrishna Ashram Nagpur, Madhy Pradesh. Approximate size of the PDF file of this book is 10.5 MB. This book has 340 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानंदअध्यात्म, योग10.5 MB340



पुस्तक से : 

प्रस्तुत पुस्तक का यह द्वितीय संस्करण है। स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेदान्त पर दिए गए भाषणोंका संग्रह "ज्ञानयोग" है। इन व्याख्यानों में स्वामीजीने वेदान्तके गूढ़ तत्वों को ऐसे सरल, स्पष्ट और सुन्दर रूपसे विवेचना की है कि आज-कल के शिक्षित जनसमुदाय को ये खूब जँच जाते है । उन्होंने यह दर्शाया है कि वैयक्तिक तथा सामुदायिक जीवन गठनमें वेदान्त किस प्रकार सहायक होता है।

 

"इस जगत का अस्तित्व नहीं है", "जगत् मिथ्या है' - इसका अर्थ क्या है? इसका यही अर्थ है कि उसका निरपेक्ष अस्तित्व नहीं है। मेरे-तुम्हारे और अन्य सबके मनके सम्बन्ध में इसका केवल सापेक्ष अस्तित्व है। हम 5 इन्द्रियों द्वारा जगत को जिस रूप में प्रत्यक्ष करते हैं, यदि हमारे एक इन्द्रिय और होती तो हम इसमें और भी कुछ नवीन प्रत्यक्ष करते तथा अधिक इन्द्रियसम्पन्न होने पर हम इसे और भी विभिन्न रूपों में देख पाते.

 

 

सूक्ष्म तत्वों से लेकर जीवनके साधारण दैनिक स्थूल कार्यों तक पर्यालोचना करने पर हम देखते हैं कि हमारा सम्पूर्ण जीवन ही सत् और असत इन दो विरुद्ध भावों का सम्मिश्रण है। ज्ञानके क्षेत्र में भी यह विरुद्ध भाव दिखाई पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य यदि जानना चाहे तो समस्त ज्ञान प्राप्त कर ले सकता है; पर दो-चार पग चलनेके बाद ही उसे एक ऐसा अभेद्य व्यवधान देखनेमें आता है, जिसको लांघ जाना उसके वश के बाहर हो जाता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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