शिव सूत्र : आचार्य वसुगुप्त हिन्दी ग्रन्थ पीडीऍफ़ | Shiv Sutra : Acharya Vasugupta Hindi Book PDF



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शिव सूत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shiv Sutra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : शिव सूत्र | इस पुस्तक के मूल रचनाकार हैं : श्री आचार्य वसुगुप्त | इस पुस्तक के संपादक हैं : आचार्य कृष्णानन्द सागर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 70 MB है | इस पुस्तक में कुल 203 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "शिव सूत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shiv Sutra | This book is originally written by : Shri Acharya Vasugupta | Editor of this book is : Acharya Krishnanand Sagar | This book is published by : Yug Nirman Yojana, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 70 MB approximately. This book has a total of 203 pages. Download link of the book "Shiv Sutra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री आचार्य वसुगुप्तभक्ति, धर्म 70 MB203



पुस्तक से : 

तत्र किलादः 'शिवसूत्रम्' साक्षाद्भगवतः शिवादागतं धन्यरत्नं तंत्र स्थानि च शिवसूत्राणि शिवोपदिष्टानीति स्पन्दशास्त्रे परिपुष्टः सर्वेनुवादिभिः प्रवादः स्वोकृतः अत एवास्य ग्रन्चरत्नस्यानादित्वं वेदवदयत्वंत्रिक दर्शने प्रस्थानग्रन्थ वन्मान्यत्वमिति प्रत्यभिशादर्शनानुसारिमिक कृतम्।

 

त्रिकदर्शन का व्यवस्थित प्रवर्धन काश्मीर में अष्टमशताब्दी के उत्तरार्ध से प्रारम्भ हो चुका था, किन्तु नवमशताब्दी में यह पूर्णतया विकसित हुआ है। यद्यपि आगमशास्त्रों से तथा गुरुपरम्परा के आधार से त्रिकदर्शन का निर्माण तो इससे भी पूर्वकाल से चला आ रहा है। अतः इसका काल निश्चित करना कठिन ही है।

 

सर्वदर्शनाचार्येण श्रीकृष्णानन्दसागरपण्डितेन स्वकीयया व्याख्या परया शिवसूत्ररजनीनामिकमा विशिष्टया टोकया समलकृत्य त्रि सूत्रमित्याव्यरत्नस्त्वं च पन्चटकोपेतस्य यत्सम्पादनंकृतं तदर्थ ते श्रीकृष्णानन्दसागरमहाभागा भूरियो धन्यवादा: प्रथवाभागिनो स्माफमाशीर्वादाश्र.

 

 

शिवसूत्रम् नामक इस प्रस्तुत लघुकलेवर ग्रन्थ में शाम्भवोपाय, शाक्तोपाय और आणवोपाय इन तीन प्रकरणों का समुल्लेखन किया गया है। शैवदर्शन के सारा का सारा प्रतिपाद्यविषय इन्हीं प्रकरणों में विषयविवेचन की दृष्टि से वर्णित है । अतएव यह त्रिकदर्शन के नाम से संस्कृतवाङमय में प्रतिष्ठित हो गया ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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