कल्याण उपनिषद अंक (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Kalyan Upanishad Anka (Gita-Press) Hindi Book PDF

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कल्याण उपनिषद अंक (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Upanishad Anka (Gita-Press) Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : कल्याण उपनिषद अंक | इस पुस्तक के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 2.1 GB हैं | पुस्तक में कुल 832 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Kalyan Upanishad Anka | This book is written/published by : Gita Press | Approximate size of the PDF file of this book is : 2.1 GB. This book has a total of 832 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, पुराण2.1 GB832


पुस्तक से :

'यदि किसी प्रकार (पुण्यविशेषसे) परमदुर्लभ मानवजन्म पाकर उसमें भी सम्पूर्ण श्रुतियोंका आद्योपान्त अनुशीलन करनेवाले पुरुषशरीर को पा लेनेपर भी जो मूढचित्त मानव अपनी मुक्ति के लिये प्रयत्न नहीं करता, भगवान् कहते हैं—'मैं विद्याओं में अध्यात्म-विद्या हूँ।' वह आत्म-हत्यारा है. वह अनित्य भोगों में फँसे रहने के कारण अपने आपको विनाशके गर्तमें गिरा रहा है।'

 

इस समय संसार में भौतिकवाद और नास्तिकताके भाव बढ़ गये हैं। इससे शान्ति का कहीं दर्शन नहीं होता। यदि वर्तमान समयमें तथा आगे भी जगत्में पूर्णरूप से वास्तविक शान्ति अपेक्षित है तो उसके लिये उपनिषदोंकी ही शरण लेनी चाहिये। उनमें बताये हुए साधनों को ही अपनाना उचित है। जबतक उपनिषदोंके श्रवण, मनन और निदिध्यासन होते थे, तबतक देशमें सर्वत्र सुख शान्तिमयी सम्पदा सुशोभित होती थी.

 

 

उपनिषद्का स्पष्ट उपदेश है कि यदि जीव स्थायी सुख शान्तिकी प्राप्ति करना चाहता है तो उसे आत्मानुभूतिके लिये प्रयत्नशील होना पड़ेगा, अध्यात्म की और बढ़े बिना स्थायी सुख शान्ति की प्राप्ति असम्भव है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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