कठोपनिषद (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Katha Upanishad (Gita-Press) Hindi Book PDF

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कठोपनिषद हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Katha Upanishad Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : कठोपनिषद | इस ग्रन्थ के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 254 MB हैं | पुस्तक में कुल 182 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Katha Upanishad | This book is written/published by : Gita Press, Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is: 254 MB. This book has a total of 182 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, उपनिषद254 MB182


पुस्तक से :

कठोपनिषद् कृष्णयजुर्वेदकी कठशाखाके अन्तर्गत है। इसमें यम और नचिकेताके संवादरूपसे ब्रह्मविद्याका बड़ा विशद वर्णन किया गया है। इसकी वर्णनशैली बड़ी ही सुबोध और सरल है। श्रीमद्भगवद्गीतामें भी इसके कई मन्त्रों का कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख है। इसमें अन्य उपनिषद् की भाँति जहाँ तत्वज्ञानका गम्भीर विवेचन है वहाँ नचिकेताका चरित्र पाठकोंके सामने एक अनुपम आदर्श भी उपस्थित करता है। जब वे देखते हैं कि पिताजी जीर्ण-शीर्ण गौएँ तो ब्राह्मणोंको दान कर रहे हैं और दूध देनेवाली पुष्ट गायें मेरे लिये रख छोड़ी है तो बाल्यावस्था होनेपर भी उनकी पितृभक्ति उन्हें चुप नहीं रहने देती और वे बालसुलभ चापल्य प्रदर्शित करते हुए बाजधवासे पूछ बैठते हैं- 'तत कस्मै मां दास्यसि' (पिताजी, आप मुझे किसको देंगे?) उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि विश्वजित् यज्ञमें सर्वस्व दान किया जाता है, और ऐसे सत्पुत्रको दान किये बिना यह पूर्ण नहीं हो सकता था। वस्तुतः सर्वस्वदान तो तभी हो सकता है जब कोई वस्तु अपनी न रहे और यहाँ अपने पुत्रके मोहसे ही ब्राह्मणको निकम्मी और निरर्थक गौएँ दी जा रही थीं। अतः इस मोहसे पिताका उद्धार करना उनके लिये उचित ही था।

 

 

इसी तरह कई बार पूछने पर जब वाजथवा ने खीझकर कहा कि मैं तुझे मृत्युको दूँगा, तो उन्होंने यह जानकर भी कि पिताजी क्रोध वश ऐसा कह गये हैं, उनके कथन की उपेक्षा नहीं की। महाराज दशरथने वस्तुस्थिति को बिना समझे ही कैकेयी को वचन दिये थे; किन्तु भगवान् रामने उनकी गम्भीरताका निर्णय करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। जिस समय द्रौपदी के स्वयंवरमें अर्जुन ने मत्स्य वेध किया और पाण्डवलोग द्रौपदीको लेकर अपने निवास स्थानपर आये उस समय माता कुन्तीने बिना जाने-बुझे घर के भीतरसे ही कह दिया था कि सब भाई मिलकर भोगो. माताकी यह उक्ति सर्वथा लोकविरुद्ध और भ्रान्तिजनित थी, परन्तु मातृभक्त पाण्डवको उसका अक्षरशः पालन ही अभिष्ट हुआ. ऐसाही प्रसंग नचिकेता के सामने उपस्थित हुआ और उन्होंने भी अपने पिताके वचन की रक्षा के लिये उनके मोहजनित वात्सल्य और अपने ऐहिक जीवनको सत्यकी वेदीपर निछावर कर दिया।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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