मुण्डकोपनिषद (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Mundaka Upanishad (Gita-Press) Hindi PDF


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मुण्डकोपनिषद (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mundaka Upanishad (Gita-Press) Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : मुण्डकोपनिषद | इस ग्रन्थ के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 189 MB हैं | पुस्तक में कुल 136 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Mundaka Upanishad | This book is written/published by : Gita Press, Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is: 189 MB. This book has a total of 136 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, उपनिषद189 MB136


पुस्तक से :

मुण्डकोपनिषद् अथर्ववेद मन्त्रभागके अन्तर्गत है। इसमें 3 मुण्डक हैं और एक-एक मुण्डकके दो-दो खण्ड हैं। ग्रन्थ के आरम्भ में ग्रंथोक्त विद्याकी आचार्यपरम्परा दी गयी है। वहाँ बतलाया है कि यह विद्या ब्रह्माजीसे अथर्वा प्राप्त हुई और अथर्वा से क्रमशः अंगी और भारद्वाजके द्वारा अङ्गिरा को प्राप्त हुई। उन अङ्गिरा मुनिके पास महागृहस्थ शौनकने विधिवत् आकर पूछा कि 'भगवन् ! ऐसी कौन-सी वस्तु है जिस एकके जान लेनेपर सबकुछ जान लिया जाता है ? महर्षि शौनकका यह प्रश्न प्राणिमात्र के लिये बड़ा कुतूहलजनक है, क्योंकि सभी जीव अधिक-से-अधिक वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं.

 

जिस प्रकार मकड़ी जालेको बनाती और उसे निगल जाती है, जैसे पृथिवी में ओषधियाँ उत्पन्न होती है और जैसे सजीव पुरुषसे केश एवं लोम उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार उस अक्षरसे यह विश्व प्रकट होता है।

 


जो सबको [ सामान्यरूप से ] जाननेवाला और सबका विशेषज्ञ है तथा जिसका ज्ञानमय तप है उस [ अक्षरब्रह्म ] से ही यह ब्रह्म (हिरण्यगर्भ), नाम, रूप और अन्न उत्पन्न होता है ॥

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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