नित्य-स्तुति (गीता प्रेस) पुस्तक | Nitya-Stuti (Gita-Press) Book PDF

Nitya-Stuti-Gita-Press-Book-PDF

नित्य-स्तुति ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nitya-Stuti Book

इस पुस्तक का नाम है: नित्य-स्तुति | इस पुस्तक के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 72 MB हैं | पुस्तक में कुल 166 पृष्ठ हैं.

Name of the book is : Nitya-Stuti. This book is written/published by: Gita-Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 72 MB. This book has a total of 166 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुरधर्म, भक्ति72 MB166



पुस्तक से : 

कायरताके दोषसे उपहत स्वभाववाला और धर्मके विषय में मोहित अन्तःकरणवाला मैं आपसे पूछता हूँ कि जो निश्चित श्रेय हो वह मेरे लिये कहिये. मैं आपका शिष्य हूँ । आपके शरण हुए मेरेको शिक्षा दीजिये ।

 

हे प्रभो! आपही माता और आप ही पिता हैं, आप ही बन्धु और आप ही सखा हैं, आप ही विद्या और आप ही धन हैं; हे देवोंके देव! आप ही मेरे सर्वस्व हैं।

 

स्मृति (याद) दो प्रकारकी होती है (१) क्रियात्मक, जैसे नाम-जप करना आदि और (२) ज्ञानात्मक | क्रियात्मक स्मृति निरन्तर नहीं रहती, पर ज्ञानात्मक स्मृति निरन्तर रहती है । जान लिया तो बस जान ही लिया । जाननेके बाद फिर विस्मृति — भूल नहीं होती। क्रियात्मक स्मृति में जब क्रिया नहीं होती, तब भूल होती है। ज्ञानात्मक स्मृति की भूल दूसरे प्रकारकी है ।

 

 

मनुष्यको अपनेमें अनाथपनेका अनुभव क्यों होता है? जब वह किसी वस्तु-व्यक्ति को अपना मान लेता है, तब उसका अभाव होनेसे उसको अपनेमें अनाथपनेका अनुभव होने लगता है यह नियम है कि जब मनुष्य अपनेको किसी वस्तु व्यक्तिका मालिक मान लेता है, तब वह अपने मालिकको भूल जाता हैl

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"नित्य-स्तुति (गीता प्रेस)" पुस्तकको सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Nitya-Stuti (Gita-Press)" book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (72 MB)


If you like this book we recommend you to buy it from the original publisher/owner. Thank you.