रुद्राष्टाध्यायी (गीता प्रेस) पुस्तक | Rudrashtadhyayi (Gita-Press) Book PDF

 

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रुद्राष्टाध्यायी (गीता प्रेस) पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Rudrashtadhyayi (Gita-Press) Book

इस पुस्तक का नाम है : रुद्राष्टाध्यायी | इस पुस्तक के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 13 MB हैं | पुस्तक में कुल 229 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Rudrashtadhyayi | This book is written/published by : Gita Press | Approximate size of the PDF file of this book is : 13 MB. This book has a total of 229 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म13 MB229


पुस्तक से :

जो व्यक्ति समुद्रपर्यंत वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धन-धान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के 'रुद्रीजप' एवं 'रुद्राभिषेक' - का है. इसलिये जो भगवान रूद्र का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है अथवा रुद्राभिषेक करता है वह इसी देह से निश्चित ही रूद्ररूप हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है.

 

मनुष्य का मन विषयलोलुप होकर अधोगति को प्राप्त न हो और अपनी चित्तवृतियों को स्वच्छ रख सके - इसके निमित्त रूद्र का अनुष्ठान करना मुख्य और उत्कृष्ट साधन है. यह रुद्रानुष्ठान प्रवृति-मार्ग से निवृत्ति-मार्ग को प्राप्त कराने में समर्थ हैं.

 

पुरुषोसूक्त के प्रथम मंत्र में विराट पुरुष का अति भव्य-दिव्य वर्णन प्राप्त होता है. अनेक सिरोंवाले, अनेक आखोंवाले, अनेक चरणोंवाले वे विराट पुरुष समग्र ब्रह्मांड में व्याप्त होकर दस अंगुल उपर स्थित हैं.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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