संक्षिप्त श्री वराह पुराण (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Sankshipt Shri Varaha Puran (Gita-Press) Hindi Book PDF

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संक्षिप्त श्रीवराह पुराण (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sankshipt Shri-Varaha-Puran (Gita-Press) Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: संक्षिप्त श्रीवराह पुराण| इस पुस्तक के प्रकाशक हैं: गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 891 MB हैं | पुस्तक में कुल 414 पृष्ठ हैं|

Name of the book is: Sankshipt Shri-Varaha-Puran. This book is published by: Gita Press | Approximate size of the PDF file of this book is: 891 MB. This book has a total of 414 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, पुराण891 MB414


पुस्तक से :

पुरुषोत्तम नरसे उत्पन्न होने के कारण जलको 'नार' कहा जाता है, क्योंकि जल भी नार अर्थात् पुरुषोत्तम परमात्मासे उत्पन्न हुआ है। सृष्टिके पूर्व वह नार ही भगवान् हरिका अयन- निवास रहा, अतएव उनकी नारायण संज्ञा हो गयी।

 

बृहस्पतिजीने कहा- मुने! पुरुष शुभ या अशुभ जो कुछ भी कर्म करे, वह सब का सब भगवान् नारायणको समर्पण कर देनेसे कर्मफलों से लिप्त नहीं हो सकता।

 

'यदि जीवात्मा शरीर धारण करने पर अपने स्वाभाविक धर्मका अनुष्ठान करता हुआ हृदय में सदा परमात्मा से संयुक्त रहता है तो वह किसी प्रकारका कर्म करता हुआ भी विषादको प्राप्त नहीं होता।

 

 

द्विजवरो! उस मेरुपर्वतका पूर्वी देश परम प्रकाशमय है। उसमें चक्रपाद नामका एक पर्वत है, जिसकी अनेक धातुओं से विद्योतित होनेसे अद्भुत शोभा होती है। इस परम रमणीय चक्रपाद पर्वतको सम्पूर्ण देवताओंकी पुरी कहते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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