संक्षिप्त स्कन्द पुराण (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Sankshipt Skand Puran (Gita-Press) Hindi Book PDF

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संक्षिप्त स्कन्दपुराण (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sankshipt Skand-Puran (Gita-Press) Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : संक्षिप्त स्कन्दपुराण | इस पुस्तक के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 3.3 GB हैं | पुस्तक में कुल 1406 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Sankshipt Skand-Puran | This book is written/published by : Gita Press | Approximate size of the PDF file of this book is : 3.3 GB. This book has a total of 1406 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, पुराण3.3 GB1406


पुस्तक से :

मुने! इस पृथ्वीपर दान से बढ़कर अत्यन्त दुष्कर कोई कार्य नहीं है। यह प्रत्यक्ष देखा जाता है। सभी लोग इसके साक्षी हैं। मनुष्य धनके लिये महान् लोभ होनेके कारण अपने प्यारे प्राणों का भी मोह छोड़कर महाभयंकर समुद्र, जंगल और पहाड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। दूसरे धनके ही लोभसे सेवा जैसी निन्दित वृत्तिका आश्रय लेते हैं, जिसे कुत्तेकी वृत्ति के समान त्याज्य माना गया है। कुछ लोग खेतीकी वृत्ति अपनाते हैं, जिसमें प्रायः जीवोंकी हिंसा होती है और स्वयं भी बहुत क्लेश उठाने पड़ते हैं। इस प्रकार जो बड़े दुःख से उपार्जन किया गया, सैकड़ों आयास प्रयास से प्राप्त किया गया, प्राणों से भी अधिक प्रिय है, उस धनका त्याग अत्यन्त दुष्कर है।

 

विद्या पढ़कर यदि मनुष्य दुराचारी हो गया तो उसका सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ है। बहुत क्लेश उठाकर जो पत्नी प्राप्त की गयी, वह यदि कटुवादिनी निकली तो वह भी व्यर्थ है। कष्ट उठाकर जो कूआँ बनवाया गया, उसका पानी यदि खारा निकला तो वह भी निरर्थक है तथा अनेक प्रकार के क्लेश सहन करने के पश्चात् जो मनुष्यजन्म मिला, वह यदि धर्माचरण के बिना बिताया गया तो उसे भी व्यर्थ ही समझना चाहिये।

 

 

जिसे देकर पीछे पश्चात्ताप किया जाय, जो अपात्र को दिया जाय तथा जो बिना श्रद्धाके अर्पण किया जाय, वह दान नष्ट हो जाता है। पश्चात्ताप, अपात्रता और अश्रद्धा- ये तीनों दानके नाशक हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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