तंत्र के दिव्य प्रयोग हिन्दी पुस्तक | Tantra ke Divya Prayog Hindi Book PDF

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तंत्र के दिव्य प्रयोग हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Tantra ke Divya Prayog Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: तंत्र के दिव्य प्रयोग | इस पुस्तक के लेखक हैं : आर. कृष्णा | पुस्तक का प्रकाशन निरोगी दुनिया प्रकाशन, जयपुर ने किया है. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 39 MB हैं | पुस्तक में कुल 196 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Tantra ke Divya Prayog. This book is written by: R. Krishna | The book has been published by Nirogi Duniya Prakashan, Jaipur. Approximate size of the PDF file of this book is: 39 MB. This book has a total of 196 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आर. कृष्णाधर्म, मंत्र-साधना 39 MB196


पुस्तक से : 

अनन्त जन्मों से एक खोज चलती रही है अपने को पहचानने की, स्वयं को जानने को, क्योंकि स्वयं को जानकर ही उस मूलस्रोत तक पहुंचा जा सकता है, उस स्रोतको ज्ञात किया जा सकता है, जहां से जीवन का अवतरण होता है। जीवन को जानकर ही जीवनसे संबंधित उन मूल समस्याओं के कारणों को जाना जा सकता है, जो हमें पीड़ा, कष्ट पहुंचाते हैं। समय-असमय प्रकट होकर यह समस्याएं नाना प्रकारके दुःख-दर्द देती रहती हैं। जीवन के सत्य को जानकर ही उस शाश्वत एवं दिव्य आनन्दको प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी दिव्य अनुभूतियां कभी समाप्त नहीं होती हैं।

 

 

विज्ञान के विपरीत आत्मदर्शन की खोज वहां से शुरू होती है जहां से प्रकृति की सीमा समाप्त हो जाती है और पराभौतिक जगतकी शुरूआत होती है। आत्मदर्शन की साधना में प्रकृति प्रधान वस्तु ज्यादा सहायक सिद्ध नहीं होती। इस साधना में पंचतत्व निर्मित साधक का शरीर एक आधार भर ही होता है। इस मार्ग की शुरूआत स्थूलसे परे आत्मिक शरीर से होती है जिसकी चेतनाका संबंध सम्पूर्ण पराभौतिक जगत एवं परमात्मा तक के साथ सदैव रहता है, लेकिन यह मार्ग वैज्ञानिक-मार्गके मुकाबले ज्यादा दुष्कर, कठिन एवं जोखिम पूर्ण है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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