व्यवहार और परमार्थ (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Vyavahar aur Parmarth (Gita-Press) Hindi Book PDF

 

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व्यवहार और परमार्थ (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vyavahar aur Parmarth (Gita-Press) Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : व्यवहार और परमार्थ | इस पुस्तक के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 399 MB हैं | पुस्तक में कुल 278 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Vyavahar aur Parmarth | This book is written/published by : Gita Press, Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is : 399 MB. This book has a total of 278 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म,399 MB278


पुस्तक से :

'व्यवहार और परमार्थ' नामकी पुस्तक हमारे परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार के कुछ व्यक्तिगत पत्रोंका संग्रह है। ये पत्र 'कामके पत्र' शीर्षक से समय-समय पर 'कल्याण में प्रकाशित हुए हैं।

 

अमावस्या की चार प्रहर की रात्रि बीत जानेपर भी घड़ी समीप न होने की अवस्था में अन्धकार ज्यों-का-त्यों प्रतीत होता है। इससे भूल से ऐसा मानकर निराशा हो सकती है कि 'अमावस्याकी रात्रि तो वैसी की वैसी ही बनी है; पता नहीं, इसका अन्धकार कभी मिटेगा या नहीं। परंतु वस्तुस्थिति तो यह है कि अब प्रकाश में बहुत ही थोड़ा सा समय अवशेष रह गया है । सूर्योदय होते ही अमावस्याका घोर अन्धकार जादूके घरकी तरह अकस्मात् विलीन हो जायगा। उसका पता भी नहीं लगेगा। प्रभात के प्रकाश से सभी दिशाएँ प्रफुल्लित हो उठेंगी।

 

 

श्रेष्ठ (समाजमें प्रमुख माना जानेवाला) व्यक्ति जो-जो आचरण करता है, साधारण लोग उसीका अनुकरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, जैसा आदर्श उपस्थित करता है, उसीके अनुसार लोग वर्तते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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