आनंद रामायण हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Anand Ramayan Hindi Book
इस ग्रन्थ का नाम है : आनंद रामायण | इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार हैं : महर्षि वाल्मीकि | इस पुस्तक के प्रकाशक है: अज्ञात. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 294 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 811 पृष्ठ हैं |Name of the book is: Anand Ramayan | This book is originally written by : Maharshi Valmiki | This book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is: 294 MB. This book has a total of 811 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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महर्षि वाल्मीकि | भक्ति, धर्म | 294 MB | 811 |
पुस्तक से :
इक्ष्वाकुकुलमें श्रेष्ठ, लोगोमें प्रसिद्ध, बलवान् क्षत्रिय, सरयू नदी के किनारे बसी हुई अयोध्या नगरीके राजा, जम्बूद्वीपके स्वामी, बड़े भारी श्रीमान् राजा दशरथ विशाल सेना रखकर धर्म तथा न्यायपूर्वक राज्यका शासन करते थे अयोध्याके पास ही कोसलदेशकी कोसलपुरी में कोसल नामका एक बड़ा पुण्यात्मा राजा राज्य करता था. उसकी विवाहके योग्य एक सुन्दरी कौसल्या नामकी पुत्री थी। उसका उसके पिता कोसलने दशरथ के साथ विवाह निश्चित किया। बादमें आनन्दके साथ विवाह के दिन का निश्चय करके उन्होंने लग्नके निमित्त राजा दशरथ को बुलाने के लिए दूतोको भेजा. उस समय राजा दशरथ सरयूनदी के बीच नौकापर बैठकर इष्टमित्रों तथा मन्त्रियोंके साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे। रात्रिका समय था, चारों ओर सैनिक खड़े थे, चारणगण स्तुति कर रहे थे और रत्नोंके दीपके प्रकाशसे समस्त नाव जगमगा रही थी। वाराङ्गनायें नानाप्रकारके नृत्य-गान कर रही थीं.
बचपन में कैकेयीने किसी सोते हुए मुनि का मुँह स्याही से काला कर दिया था तब मुनिने उसे शाप दे दिया कि जा, तेरा मुँह भी अपयशके कारण ऐसा काला होगा कि कोई देखना नहीं चाहेगा. जब मुनि वहाँसे चलने लगे, तब कैकेयी ने भक्तिपूर्वक बायें हाथसे उनका दण्ड-कमण्डल उन्हें दे दिया. इस सेवा से प्रसन्न होकर मुनिने उसे वरदान दिया कि जा, तेरा बायाँ हाथ समय पड़नेपर बज्र जैसा कठोर हो जायगा और किसी तरह घायल न होगा. कैकेयीने उस वरका स्मरण करके हो अपने हाथको घुरे के सदृश बनाकर रथ में लगा दिया था। रणमें दैत्योंको जीतने के बाद राजा दशरथने कैकेयीके इस साहस भरे कार्यको देखकर प्रसन्नतापूर्वक उससे दो वर मांगने के लिए कहा। उसने भी उन दोनों वरोको राजाके पास ही धरोहररूप में रख दिया और कहा कि जब मैं माँगू, तब आप ये दो वर मुझे दे दीजियेगा.
जिन्होंने पूर्वसमय में राजा उत्तानपादके पुत्रको ध्रुवपदपर स्थापित किया. जिनके नामस्मरणमात्रसे ही मनुष्य सद्गतिको प्राप्त हो जाता है। प्राचीन समय मे मगरसे पकड़ा गया गजेन्द्र जिनके नामका स्मरण करनेस मुक्त होकर विष्णु सान्निध्यको प्राप्त हुआ और जय नामका द्वारपाल बना. ग्राह भी विष्णुका चिन्तन करके विजय नामका द्वारपाल बना था.
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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