दश महाविद्या (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Dasha Mahavidya (Gita-Press) Hindi Book PDF

 

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दश महाविद्या हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Dasha Mahavidya Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : दश महाविद्या | इस ग्रन्थ के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 20 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 25 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Dasha Mahavidya | This book is written/published by : Gita Press Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is: 20 MB. This book has a total of 25 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म, तंत्र20 MB25


पुस्तक से :

'दस महाविद्याओं में काली प्रथम हैं। महाभागवतके अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करनेवाली दस महाविद्याएँ हैं। विद्यापति भगवानशिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करनेमें समर्थ हैं। दार्शनिक दृष्टि से भी कालतत्त्व की प्रधानता सर्वोपरि है। इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओंकी आदि हैं अर्थात् उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं।

 

भारतमें सर्वप्रथम महर्षि वसिष्ठने तारा की आराधना की थी। इसलिये तारा को वसिष्ठाराधिता तारा भी कहा जाता है। वसिष्ठने पहले भगवती ताराकी आराधना वैदिक रीतिसे करनी प्रारम्भ की, जो सफल न हो सकी। उन्हें अदृश्यशक्तिसे संकेत मिला कि वे तान्त्रिक पद्धतिके द्वारा जिसे 'चिनाचारा' कहा जाता है, उपासना करें। जब वसिष्ठने तान्त्रिक पद्धति का आश्रय लिया, तब उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई। यह कथा 'आचार तन्त्रमें' वसिष्ठ मुनिकी आराधना उपाख्यान में वर्णित है। इससे यह सिद्ध होता है कि पहले चीन, तिब्बत, लद्दाख आदिमें तारा की उपासना प्रचलित थी।

 


बिहार के सहरसा जिले में प्रसिद्ध 'महिषी' ग्राम में उग्रतारा का सिद्धपीठ विद्यमान है। वहाँ तारा, एकजटा तथा नीलसरस्वती की- तीनों मूर्तियाँ एक साथ हैं। मध्यमें बड़ी मूर्ति तथा दोनों तरफ छोटी मूर्तियाँ हैं। कहा जाता है कि महर्षि वसिष्ठने यहीं ताराकी उपासना करके सिद्धि प्राप्त की थी।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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