श्री गोरख बोध वाणीसंग्रह हिन्दी पुस्तक | Shri Gorakh Bodh Vani-Sangrah Hindi Book PDF

 

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श्री गोरख बोध वाणीसंग्रह हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Gorakh Bodh Vani-Sangrah Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : श्री गोरख बोध वाणीसंग्रह | इस ग्रन्थ के लेखक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक है: फूलचंद बुकसेलर, अजमेर. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 6 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 137 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Shri Gorakh Bodh Vani-Sangrah | This book is written by : Unknown | This book is published by : Foolchand Book-seller, Ajmer. Approximate size of the PDF file of this book is: 6 MB. This book has a total of 137 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अज्ञातभक्ति, धर्म6 MB137


पुस्तक से :

गोरखनाथजी अपने श्री गुरुदेव से पूछते हैं कि स्वामीजी ! मैं एक शब्द शिष्य होकर पूछता हूं जिसका उत्तर कृपा कर कहो - यह मन कैसे वश में होता है ? शिष्य को प्रारम्भ में साधक अवस्था में कैसे रहना चाहिए? शिष्य के प्रश्नों का सत्य उत्तर देवें वही सतगुरु है। 

 

हे शिष्य! साधक को चाहिए कि प्रारम्भिक अवस्था में किसी एक जगह जगत-प्रपची पुरुषों में न रहे और मार्ग, धर्मशाला या किसी वृक्ष की छाया में विश्राम करे और संसार को संसृति, ममता, श्रहंता, कामना, क्रोध, मोह, लोभ वृत्ति को धारा को त्याग कर अपने आत्म तत्त्व का चिंतन करे। कम भोजन तथा निद्रा आलस्य को जीतकर रहे।

 

हे गुरु! जड़ के बिना डाल क्या है, पांखों के बिना पक्षी कौन है? किनारे बिना नारि कौन है ? और काल बिना कौन मर सकता है? हे शिष्य ! वायु बिना पेड़ के डाल (टहनी) है, मन पक्षी बिना पांखों के धीरज बिना पाल (किनारे) को नार (नदी) और बिना काल रूप नींद है।

 


हे गुरु! ओ३म्कार कौन है ? आप कौन हैं, माता कौन हैं? पिता कौन है? मन में सदैव शीतलता समुद्र सम्पूर्ण भरा कब रहे? हे प्रवधू ! शब्द ही ॐ है, ज्योति स्वयं अपना स्वरूप है। शून्यमय प्रकृति को सब ही माता है, चेतन सत्ता ही पिता है। मन का ध्येयाकार निश्चय बनने से शीतल-सिंधु रहता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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