ज्ञानेश्वरी गीता हिन्दी पुस्तक | Gyaneshwari Geeta Hindi Book PDF

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ज्ञानेश्वरी गीता हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gyaneshwari Geeta Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : ज्ञानेश्वरी गीता | इस ग्रन्थ के रचनाकार हैं : श्री ज्ञानेश्वर जी महराज | इस रचना के हिन्दी अनुवादक हैं - पंडित रघुनाथ माधव भगाड़े. इस पुस्तक का प्रकाशन इंडियन प्रेस लिमिटेड प्रयाग ने किया है. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 105 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 730 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Gyaneshwari Geeta | This book is written by : Shri Gyaneshwar ji Maharaj | Hindi translation is done by : Pandit Raghunath Madhav bhagade. Approximate size of the PDF file of this book is: 105 MB. This book has a total of 730 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री ज्ञानेश्वर जी महराजभक्ति, धर्म,105 MB730


पुस्तक से :

भक्तिका स्वरूप शुद्धप्रेम है। नारद ने कहा है कि "सात्वस्सिन्परमप्रेमरूपा" अर्थात् आत्मस्वरूप में परम प्रेम का नाम भक्ति हैं; तथा प्रेम का स्वरूप अनिर्वचनीय कहा है। ज्ञानेश्वर महाराज कहते हैं कि ईश्वरकी सहजस्थिति का ही नाम भक्ति है । जिस अखण्ड प्रकाशसे विश्व की स्थिति या अस्थिति है, जिस प्रकाश से आन्तरिक वासनानुसार जगत् की प्रतीति होती है उसे भक्ति कहते हैं एवं चन्द्र से जैसे चन्द्रिका भिन्न नहीं वैसे ही भक्ति भी ब्रह्मस्वरूपसे भिन्न नहीं है, तथा चन्द्रिका जैसे भिन्नसी जान पड़ती है वैसे ही भक्ति भी भिन्नसी समझनी चाहिए।

 

श्रीमद्भगवद्गीताकी अनेक संस्कृत और हिन्दी भाषा टीकाएँ प्रसिद्ध है। उनमें से ज्ञानेश्वर महाराज-कृत भावार्थ-दीपिका नामक व्याख्या, जो पुरानी मराठी भाषा में लिखी है, दक्षिण में अत्युच्च श्रेणी में गिनी जाती है। यह ग्रन्थ साहित्य की दृष्टि से अनुपम है तथा सिद्धान्त की ऋष्टि से भी अनोखा है। इसमें गीता के प्रत्येक श्लोकका केवल भाव ही दिया है पर सम्पूर्ण व्याख्यान अद्भुत ज्ञान तथा भक्तिसे भरा हुआ है। इस ग्रन्थ की यही विशेषता है।

 


ज्ञानेश्वरी के समान ओज से भरा हुआ, आत्मानुभव के प्रकाश से जगमगाता हुआ, प्रेम और भक्तिरस से थबथवाता हुआ दूसरा ग्रन्थ मिलना कठिन है। काव्यदृष्टि से देखिए चाहे भाषादृष्टि से- ज्ञानेश्वरी की कक्षा में रखने के योग्य थोड़ ही ग्रन्थ मिलेंगे। ज्ञानेश्वरी के अनन्तर महाराज ने अमृतानुभव नामक ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने स्वतन्त्ररूप से सम्पूर्ण अध्यात्मशास्त्र का निरूपण किया है। यह ग्रन्थ भी अत्यन्त मनोहर और उच्च श्रेणी का ज्ञान हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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