हिन्दू धर्म (स्वामी विवेकानंद) पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Hindu Dharma (Swami Vivekananda) Book
इस पुस्तक का नाम है: हिन्दू धर्म | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द | पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 5 MB हैं | पुस्तक में कुल 134 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Hindu Dharma. This book is written by: Swami Vivekananda. The book is published by: Shri Ramakrishna Aashram, Nagpur. Approximate size of the PDF file of this book is 5 MB. This book has a total of 134 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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स्वामी विवेकानन्द | धर्म | 5 MB | 134 |
पुस्तक से :
ऐतिहासिक युगके पूर्व के केवल तीन ही धर्म आज संसार में प्रचलित हैं-हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और यहूदी धर्म। ये तीनों धर्म अनेकानेक प्रचण्ड आघातोंके पश्चात् भी लुप्त न होकर आज भी जीवित हैं – यह उनकी आन्तरिक शक्ति का प्रमाण है। पर जहाँ हम यह देखते हैं कि यहूदीधर्म ईसाई धर्मको नहीं पचा सका वरन् अपने सर्व विजयी सन्तान ईसाई धर्म द्वारा अपने जन्मस्थानसे निर्वासित कर दिया गया, और केवल मुट्ठी भर पारसीही अपने महान् धर्मकी गाथा गाने के लिये अब अवशेष हैं, चहाँ भारत में एक के बाद एक अनेको धर्म पंथ का उद्भव हुआ और वे पंथ वेदप्रणीत धर्मको जड़ से हिलाते से प्रतीत हुए,
आत्मा किसी पदार्थसे सृष्ट नहीं हुआ है, क्योंकि सृष्टि का अर्थ है भिन्न भिन्न द्रव्योंका एकत्रीकरण और इस एकत्रीकरण का अर्थ होता है भविष्य में अवश्यम्भावी पृथक्करण । अतएव यदि आत्माका सृजन हुआ, तो उसकी मृत्यु भी होनी चाहिये । इससे सिद्ध हो गया कि आत्माका सृजन नहीं हुआ था, वह कोई सृष्ट पदार्थ नहीं है । पुनश्च, कुछ लोग जन्मसे ही सुखी होते है, पूर्ण स्वास्थ्यका आनंद भोगते हैं, उन्हें सुंदर शरीर, उत्साहपूर्ण मन और सभी आवश्यक सामग्रियाँ प्राप्त रहती हैं।
ये सभी बातें तो ठीक मान ली गईं, पर यह कैसी बात है कि मेरे पूर्वजन्मकी कोई बात मुझे स्मरण नहीं है? इसका समाधान तो बहुत सरल है । मैं अभी अंग्रेजी बोल रहा हूँ। वह तो मेरी मातृभाषा नहीं है। सच पूछो तो इस समय मेरी मातृभाषाके कोई भी शब्द मेरे चित्त में उपस्थित नहीं हैं; पर उन शब्दों को सामने लानेका थोड़ा प्रयत्न करते ही वे मेरे मन में उमड़ आते हैं। इससेतो यही सिद्ध होता है कि मानस-समुद्र की सतह पर जो कुछ तैरता है वही हमें बोधगम्य हुआ करता है ।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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