कल्याण भक्त चरितांक (भक्तमल): गीता प्रेस हिन्दी ग्रन्थ | Kalyan Bhakt Charitank (Bhaktmal) Gita-Press Hindi PDF

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कल्याण भक्त चरितांक (भक्तमल) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nava-Durga Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : कल्याण भक्त चरितांक (भक्तमल) | इस ग्रन्थ के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 62 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 825 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Kalyan Bhakt Charitank (Bhaktmal) | This book is written/published by : Gita Press Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is: 62 MB. This book has a total of 825 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म62 MB825


पुस्तक से :

जो लोग अपना सर्वस्व लूटने वाले छः (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर या श्रोत्र, चक्षु, नासा, जिह्वा, त्वचा और मन) डाकुओ पर तो पहले विजय नहीं प्राप्त करते और ऐसा मान बैठते है कि हमने दसो दिशाओको जीत लिया है, वे मूर्ख है। वस्तुतः जिस ज्ञानी और जितेन्द्रिय महात्माको समस्त प्राणियोके प्रति समता प्राप्त हो जाती है, उसी के अपने अज्ञान से उत्पन्न होनेवाले काम-क्रोधादि शत्रु मरते है। फिर उसके बाहरके शत्रु तो रहते ही कहाँ से! (वास्तवमे वही सच्चा विजयी है।)

 

कामिनी कंचन आदि विषयोंको सेवन करने की इच्छा 'काम' कहलाती है। अपने विपरीत काम होते देख या अपने अपमान तथा निन्दासे जो हृदय में जलन होती है, वह 'क्रोध' है। दूसरेके धनको पानेकी इच्छा 'लोभ' है। मेरी स्त्री, मेरा पुत्र, मेरा घर मेरा परिवार आदिरूप मेरापन 'मोह' है। अपने धन, बल, परिवार, गुण का गर्व होना 'मद' है। दूसरे अपनेसे श्रेष्ठ क्यो है, ऐसी डाहको 'मत्सर' कहते हैं। सबको सुख पहुॅचानेवाले यथार्थ वचन को सत्य कहते हैं और जो वाणी इससे उलटी है, वह 'असत्य' है। दूसरे को हानि पहुँचाने का विचार और यत्न 'हिंसा' है। इन सबका त्याग करना चाहिये।

 


जो पुरुष नाशवान् शरीरके द्वारा समर्थ होकर भी प्राणियोंपर दया करके धर्म या यश प्राप्त करने की इच्छा चेष्टा प्रयत्न नहीं करता, वह तो स्थावर वृक्ष-पर्वतादिके द्वारा भी शोचनीय है; क्योंकि वृक्ष पर्वतादि भी अपने शरीर के द्वारा प्राणियो की सेवा करते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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