मानसिक संतुलन (श्रीराम शर्मा आचार्य) हिन्दी पुस्तक | Mansik Santulan (Shriram Sharma Acharya) Hindi PDF

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मानसिक संतुलन हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mansik Santulan Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : मानसिक संतुलन | इस ग्रन्थ के लेखक हैं : पंᤱ श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 32 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Mansik Santulan | This book is written by : Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is: 2 MB. This book has a total of 32 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्यस्वास्थ्य, मनोविज्ञान2 MB32


पुस्तक से :

जिन लोगों की प्रवृत्ति ऐसी उत्तेजित होने वाली अथवा शीघ्र ही आवेश में आ जाने वाली होती है, वे प्रायः मानसिक निर्बलता के शिकार होते हैं । वे अपने मनको एकाग्र करके किसी एक काम में नहीं लगा सकते और इसलिए कोई बड़ी सफलता पाना भी उनके लिये असंभव हो जाता है। उनके अधिकांश विचार क्षणिक सिद्ध होते हैं । इस प्रकार मानसिक असन्तुलन मनुष्य की उन्नति में बाधा स्वरूप बनकर उसे पतनकी ओर प्रेरित करने का कारण बन जाता है ।

 

मानसिक असंतुलन की अशान्त दशा में कोई व्यक्ति न तो सांसारिक उन्नति कर सकता है, न आध्यात्मिक प्रगति संभव होती है । कारण यह है कि उन्नति के लिये, ऊँचा उठने के लिये जिस बल की आवश्यकता होती है, वह बल मानसिक अस्थिरताके कारण एकत्रित नहीं हो पाता। जिस प्रकार हाथ कांप रहा हो तो उस समय बन्दूक का निशाना नहीं साधा जा सकता, उसी प्रकार आवेश या उत्तेजना की दशा में मानसिक कम्पन की अधिकता रहती है। उस उद्विग्नताकी दशा में यह निर्णय करना कठिन होता है कि क्या करना चाहिए और क्या न करना चाहिए ।

 


प्राचीन समयमें जब शिष्य विद्याध्ययन के लिए गुरूके पास जाता था तो उसे पहले अपने धैर्यकी परीक्षा देनी होती थी । गौऐं चरानी पड़ती थीं, लकड़ियां चुननी पड़ती थीं, उपनिषदोंमें इस प्रकार की अनेकों कथायें हैं । इन्द्रको भी लम्बी अवधि तक इसी प्रकार तपस्या पूर्ण प्रतीक्षा करनी पड़ी थी, जब वह अपने धैर्यकी परीक्षा दे चुका, तब उसे आवश्यक विद्या प्राप्त हुई । प्राचीन कालमें विज्ञ पुरूष जानते थे कि धैर्यवान पुरूष ही किसी कार्यमें सफलता प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए धैर्यवान स्वभाव वाले छात्रोंको ही विद्याध्ययन कराते थे। क्योंकि उनके पढ़ाने का परिश्रम भी अधिकारी छात्रों द्वारा ही सफल हो सकता था। चंचल चित्त वाले, अधीर स्वभावके मनुष्य का पढ़ना न पढ़ना बराबर है। अक्षर ज्ञान होजाने या अमुक कक्षा का सर्टीफिकेट ले लेने से कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होता ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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