मरणोत्तर जीवन पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Maranottar Jivan Book
इस पुस्तक का नाम है: मरणोत्तर जीवन | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द | पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 3 MB हैं | पुस्तक में कुल 40 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Maranottar Jivan. This book is written by: Swami Vivekananda. The book is published by: Shri Ramakrishna Aashram, Nagpur. Approximate size of the PDF file of this book is 3 MB. This book has a total of 40 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
---|---|---|---|
स्वामी विवेकानन्द | धर्म, अध्यात्म | 3 MB | 40 |
पुस्तक से :
उस वृहत् पौराणिक ग्रंथ महाभारत में एक आख्यान है जिसमें कथानायक युधिष्ठर से धर्म ने प्रश्न किया कि संसार में अत्यन्त आश्चर्यकारक क्या है ? युधिष्टिर ने उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन भर प्रायः प्रतिक्षण अपने चारों और सर्वत्र मृत्युका ही दृश्य देखता है, तथापि उसे ऐसा दृढ़ और अटल विश्वास है कि मैं मृत्युहीन हूँ । और मनुष्य जीवनमें यह सचमुच अत्यन्त आश्चर्यजनक है। यद्यपि भिन्न भिन्न मतावलम्बी भिन्न-भिन्न जमाने में इसके विपरीत दलीलें करते आए और यद्यपि इन्द्रिय द्वारा ग्राह्य और अतीन्द्रिय सृष्टियों के बीच जो रहस्य का परदा सदा पड़ा रहेगा उसका भेदन करने में बुद्धि असमर्थ है, तथापि मनुष्य पूर्ण रूप से यही मानता है कि वह मरणहीन है।
परन्तु देह वह वस्तु नहीं है और न मन ही वह वस्तु है. देह का नाश तो प्रतिक्षण होता रहता है और मन तो सदा बदलता रहता है। देह तो एक संघात है और उसी तरह मन भी । इसी कारण परिवर्तनशीलता के परे वे नहीं पहुँच सकते। परन्तु जड़ भूत के इस क्षणिक आवरण के परे, मन के सूक्ष्म आवरण के परे भी, मनुष्य का सच्चा स्वरूप नित्य मुक्त सनातन आत्मा अवस्थित है।
सभी देशों में और सभी जमाने से मनुष्य की बुद्धि को चक्कर में डालने वाली अनेक पहेलियों में से सब से पेंचीदा स्वयं मनुष्य ही है । इतिहास के उषाकाल से जिन लाखों रहस्यों के उद्घाटन करने में मनुष्य की बहुतेरी शक्तियों का व्यय किया गया है उनमें सब से अधिक रहस्यमयी है - स्वयं उसकी प्रकृति। वह तो बिलकुल ही न सुलझने लायक पेचीदा है और साथ ही साथ अन्य सभी समस्याओं से बढ़कर महत्वपूर्ण है। हम जो कुछ जानते हैं, अनुभव करते हैं और कार्य करते हैं उन सब का मानव प्रकृति ही प्रारम्भ स्थान और भण्डार होने के कारण कभी भी ऐसा समय नहीं रहा है और न भविष्य में ही रहेगा जब कि मानव प्रकृति मनुष्य के दिये सत्र से अधिक और सर्वप्रथम विचार का विषय न हो।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
"मरणोत्तर जीवन (स्वामी विवेकानंद)" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिकमें मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |
To download "Maranottar Jivan (Swami Vivekananda)" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.