मेरा जीवन तथा ध्येय : स्वामी विवेकानंद हिन्दी पुस्तक | Mera Jivan tatha Dhyeya : Swami Vivekananda Hindi PDF

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मेरा जीवन तथा ध्येय पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mera Jivan tatha Dhyeya Book

इस पुस्तक का नाम है: मेरा जीवन तथा ध्येय | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द | पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर, मध्य प्रदेश | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 2.5 MB हैं | पुस्तक में कुल 45 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Mera Jivan tatha Dhyeya. This book is written by: Swami Vivekananda. The book is published by: Shri Ramakrishna Aashram, Nagpur, Madhya Pradesh. Approximate size of the PDF file of this book is 2.5 MB. This book has a total of 45 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानन्द जीवनी, अध्यात्म2.5 MB45



पुस्तक से : 

भारत एक ऐसी विशाल इमारत की नाई है जो एकाएक ढा दी गई हो, पहले देखने पर जिसके जीर्णोद्वार की कोई आशा-किरण न हो । वह एक बीते हुए राष्ट्रका भग्नावशेष हैं। पर थोड़ा और रुकिये, रुक कर देखिये, जान पड़ेगा कि इन खंडहरों के अन्तराल में कुछ और भी महत्वशाली चीजें हैं। सत्य यह है कि वह तत्त्व, वह आदर्श, मनुष्य जिसकी बाह्य व्यंजना मात्र हैं, जब तक कुण्ठित अथवा नष्ट भ्रष्ट नहीं हो जाता, तब तक मनुष्य भी निर्जीव नहीं होता, तब तक उसके जीर्णोद्वार की आशा भी अस्त नहीं होती।

 

हर राष्ट्र में यदि आपको कुछ कार्य करना है तो उसी राष्ट्र की रीति-विधियों को अपनाना होगा। हर आदमी को उसीकी भाषा में बोलना होगा। अगर आपको अमेरिका या इंग्लैण्ड में धर्मकी बात का संदेशा देना है तो आपको राजनैतिक रीति-विधियों को स्वीकार करना ही होगा - संस्थाएँ बनानी होंगी, समितियाँ गढ़नी होंगी, चोट देने की व्यवस्था करनी होगी, बैलेटके डिब्बे बनाने होंगे, सभापति चुनना होगा - इत्यादि सारी खुराफात गढ़नी होंगी - और वह इसलिए कि पाश्चात्य जातियोंके समझ में यही रीति-विधि आती है, उन्हें यही भाषा समझ आती है। पर यहाँ भारतमें यदि आपको राजनीति की ही बात कहनी है तो धर्मकी भाषा को माध्यम बनाना होगा।

 

 

जिस सम्प्रदाय में मैं सम्मिलित हूँ उसे संन्यासी की संज्ञा दी जाती है। इस शब्द का अर्थ है- -'विरक्त'- संसार जिसने छोड़ दिया हो। यह सम्प्रदाय बहुत बहुत प्राचीन, चिर-प्राचीन है। गौतम बुद्ध जो ईसा के ५६० वर्ष पूर्व आविर्भूत हुए, वे भी इसी सम्प्रदाय में थे। वे इसके सुधारक मात्र थे -- बस, इतना प्राचीन है वह।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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