मृत्यु और मृत्यु के बाद हिन्दी पुस्तक | Mrityu Aur Mrityu ke Bad Hindi Book PDF

                          

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मृत्यु और मृत्यु के बाद हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mrityu Aur Mrityu ke Bad Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: मृत्यु और मृत्यु के बाद | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. विक्रम गुप्ता | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 23 MB हैं | पुस्तक में कुल 88 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Mrityu Aur Mrityu ke Bad. This book is written by: Dr Vikram Gupta. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 23 MB. This book has a total of 88 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. विक्रम गुप्ता  धर्म,भक्ति 23 MB88



पुस्तक से : 

सृष्टि रचना के समय सिर्फ एकही तत्व विद्धमान था जो अनन्त, अनादि, नित्य, असीम सर्वव्याप्त था। यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म एवं परमाणु का भी परमाणु था उसे सत् चित् तथा आनन्द स्वरूप भी नहीं कहा जा सकता। यही सृष्टिका सारतत्व है जिसका कोई कारण नहीं है परंतु समस्त जड़ चेतनात्मक जगत् का यही परम कारण है। वहां ज्ञान और क्रियाकी कोई अभिव्यक्ति नहीं थी। यह एक सत्यता थी। इसका कोई नाम रूप न था। इसे न व्यक्त किया जा सकता है न अव्यक्त, न दृश्य न अदृश्य, न शान्त न स्पन्दन युक्त, न जड़, न चेतन उसे कुछ नहीं कह सकते फिरभी वही सब कुछ है। यह सभी अभिव्यक्तियोंसे पूर्ण है।

 

इनकी सत्ता स्वतंत्र नहीं है। परब्रह्म ही नित्य एवं शाश्वत है। यह प्रकृतियां अनित्य एवं विनाशी है। परंतु ज्ञानके अभावमें यह नित्य जैसी लगती है। माया इसी भ्रमको कहा जाता है। प्रकृति को नित्य सदा रहने वाली अविनाशी मानना ही माया है। यही जीव के बंधनका कारण बन जाती है। सूर्य देव प्रकट रूप से हमारे सामने है, हम न माने तो क्या सूर्यका अस्तित्व गिर जायेगा ऐसा नहीं हैं। सत् का ज्ञान होने पर यह प्रकृतियां "ब्रह्म" में लीन हो जाती हैं। इसीको जीवन की 'मुक्तावस्था" कहते हैं तब जड़-चेतनात्मक जगतका एकमात्र निमित एवं उपादान कारण वह "परब्रह्य" ही है।

 

 

"सूक्ष्म" शरीर द्वारा कार्य किए जाते हैं जो स्थूल शरीर द्वारा संभव नहीं है। इनकी क्षमता देवलोकके साथ जुड़ी रहती है। इनकी अवधि असीम होती है। यह असाधारण सफलताएं एवं सफलताएं दान करनेके अत्सुक रहते है। ये ही "सिद्धपुरुष" कहलाते है। ये ही सिद्धपुरुष भौतिक शरीरमें ऋषि कहलाते हैं। सूक्ष्म शरीर में यह "दिव्य" पुरुष कहलाते है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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