नागा संन्यासियों का इतिहास हिन्दी पुस्तक | Naga Sanyasiyon ka Itihas Hindi Book PDF

                         

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नागा संन्यासियों का इतिहास हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Naga Sanyasiyon ka Itihas Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: नागा संन्यासियों का इतिहास | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. अशोक त्रिपाठी | पुस्तक का प्रकाशन किया है : संरचना प्रकाशन, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 427 MB हैं | पुस्तक में कुल 400 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Naga Sanyasiyon ka Itihas. This book is written by: Dr Ashok Tripathi. The book is published by: Sanrachna Prakashan, Prayagraj. Approximate size of the PDF file of this book is 427 MB. This book has a total of 400 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. अशोक त्रिपाठी  इतिहास427 MB400



पुस्तक से : 

भारतवर्ष में साधु-संतों के सहस्रों संप्रदाय विद्यमान हैं। इन्हीं संप्रदायों में एक है दशनामी संप्रदाय । दशनामी संप्रदायकी स्थापना दक्षिण भारतके दार्शनिक संत शंकराचार्य ने नवीं शताब्दी में की थी । शंकर ने अपने भाष्यों, मौलिक सृजन एवं शास्त्रार्थ द्वारा लोगोंको धर्म का मर्म समझाया। उनका उदय उस कालमें हुआ था जब भारतीय समाज विखंडित हो रहा था तथा धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं दार्शनिक अराजकता व्याप्त हो रही थी। आदि शंकराचार्यने सर्वप्रथम बौद्ध एवं जैन धर्मावलम्बियों के सिद्धांतोंका खंडन कर वैदिक दर्शन, अद्वैत वेदांत और श्रुति - स्मृति प्रतिपादित सनातन धर्मको तर्कपूर्ण आधार पर प्रस्तुत किया। इस प्रकार उन्होंने हिंदू धर्म को पुनरुज्जीवित किया।

 

शंकराचार्य ने पूरे देशका भ्रमण किया तथा शास्त्रार्थ व वाद-विवाद के द्वारा लोगोंको 'वेदान्त-दर्शन' का अनुकरण करने हेतु प्रेरणा प्रदान की। उन्होंने 'अद्वैतवाद' नामक दार्शनिक सिद्धांतका प्रतिपादन किया। वेदान्त हिंदुओं का जीवंत धर्म है एवं शंकराचार्य ने इसके बौद्धिक प्रतिरूप को रेखांकित किया। शंकर का अद्वैत स्वच्छ एवं मुक्त वायुमें सांस लेता है। यह तार्किक, अरूढ़िवादी, सार्वभौमिक, मानवतावादी व वैज्ञानिक है।

 

 

संन्यासी बनने का इच्छुक व्यक्ति अपने सभी संबंधियों की स्वीकृति प्राप्त कर तथा अपनी सारी संपत्ति उनको स्थानान्तरित कर अपने गाँवका एक चक्कर लगाता है एवं उत्तर दिशा में एक कोस दूरी तक जाता है। वह अपने गाँवके सभी मंदिरों तथा समाधियों में पूजा अर्चना करता है तथा सारा जीवन ईश्वर की सेवा में बितानेकी प्रार्थना करता है। तदनंतर वह एक विद्वान गुरु ( जो कि ब्राह्मण हो) की खोज करता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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