निरोग जीवन का राजमार्ग (श्रीराम शर्मा आचार्य) हिन्दी पुस्तक | Nirog Jivan ka Rajmarg (Shriram Sharma Acharya) Hindi PDF

 

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निरोग जीवन का राजमार्ग हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nirog Jivan ka Rajmarg Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : निरोग जीवन का राजमार्ग | इस ग्रन्थ के लेखक हैं : पंᤱ श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 4 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 48 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Nirog Jivan ka Rajmarg | This book is written by : Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana, Gayatri Tapobhumi, Mathura. Approximate size of the PDF file of this book is: 4 MB. This book has a total of 48 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्यस्वास्थ्य, योग4 MB48


पुस्तक से :

प्रकृति के विशाल प्रांगण में नाना जीव-जंतु, जलचर थलचर और नभचर है। प्रत्येक का शरीर जटिलताओं से परिपूर्ण है, उसमें अपनी-अपनी विशेषताएँ और योग्यताएँ हैं, जिनके बल पर वे पुष्पित एवं फलित होते हैं, यौवन और बुढ़ापा पाते हैं, जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त करते हैं।

 

पृथ्वी पर रहने वाले पशुओं का अध्ययन कीजिए। गाय, भैंस, बकरी, भेंड, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, ऊँट इत्यादि जानवर अधिकतर प्रकृति के साहचर्य में रहते हैं, उनका भोजन सरल और स्वाभाविक रहता है, खानपान तथा विहारमें संयम रहता है। घास या पेड़-पौधों की हरी, ताजी पत्तियाँ या फल इत्यादि उनकी सुधा निवारण करते हैं। सरिताओं और तालाबोंके जलसे वे अपनी तृषा का निवारण करते हैं. ऋतुकाल में विहार करते हैं, प्रकृति स्वयं उन्हें काल और ऋतुके अनुसार कुछ गुप्त आदेश दिया करती है, उनकी स्वयं की वृत्तियों स्वयं उन्हें आरोग्य की ओर अग्रसर करती रहती हैं। उन्हें ठीक मार्ग पर रखने वाली प्रकृति माता ही है। यदि कभी किसी कारणसे वे अस्वस्थ हो भी जाय, तो प्रकृति स्वयं अपने आप उनका उपचार भी करने लगती है। कभी पेट के विश्राम द्वारा कभी धूप मालिश, रगड़, मिट्टी के प्रयोग, उपवास द्वारा कभी ब्रह्मचर्य द्वारा किसी न किसी प्रकार जीव-जंतु स्वयं ही स्वास्थ्यकी ओर जाया करते हैं।

 


प्रकृतिमें प्रचुरता है, हर प्रकार की प्रचुरता है। आनंद, स्वास्थ्य, आरोग्य की इतनी अधिकता है कि हम उसका सीमा बंधन नहीं कर सकते। स्वास्थ्य की उस अधिकता के कारण ही प्रकृति के अनेक पशु-पक्षी, जीव-जंतु जीवनका आनंद लेते हैं जल, वायु प्रकाश भोजनसे जीवन तत्त्व खींचकर वे दीर्घ जीवन के सुख लूटते हैं। प्रकृति के कण-कण में, पत्तियों, फलों, पौधों तथा जलकी प्रत्येक बूँदमें आरोग्य भरा हुआ है। वायुके प्रत्येक अंश को, जिसे हम अंदर खींचते हैं, जलके प्रत्येक घूंट में, जिसे हम पीते हैं, फल और तरकारियों के कण-कण में स्वास्थ्य और बल हमारे लिए संचित है। प्रकृतिके पास जीवनको सर्वांग रूप से स्वस्थ रखने के लिए सभी उपकरण हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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