रस रत्नाकर हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ras Ratnakar Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है: रस रत्नाकर | इस पुस्तक के लेखक हैं : हरि शंकर शर्मा | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 46 MB हैं | पुस्तक में कुल 731 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Ras Ratnakar. This book is written by: Hari Shankar Sharma. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 46 MB. This book has a total of 731 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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हरि शंकर शर्मा | काव्य,उपन्यास,भक्ति | 46 MB | 731 |
पुस्तक से :
वैष्णव लोग भक्तिको भी रस मानते हैं। उनका कहना है कि जिस परमात्माका नाम रस हो, उसकी भक्ति को रस में न गिनना ठीक नहीं है। भगवान् जिसके आलम्बन है, रोमाञ्च, अश्रु-पातादि जिसके अनुभाव हैं, भागवतादि पुराण श्रवणके समय भगवद्भक्त भक्ति रसके उद्रेक से जिसका अनुभव करते हैं. वही भगवद्-अनुराग स्थायी भाव है। वे कहते है कि परम प्रभु परमात्मासे सम्बन्ध रखने वाला जो भक्तिरस इस प्रकार विभावादिकों से पुष्ट हो रहाहो, उसे रस स्वीकार न करना कदापि उचित नहीं हो सकता।
परन्तु आश्चर्य है कि इस रसकी बहुत कम पृथक् सत्ता स्वीकार की गयी है। अगर भक्ति में अद्भुत तल्लीनता न होती तो आज भक्तों के नामभी सुनाई न पड़ते। शृंगार और भक्ति रसमें बहुत भेद है। जिस प्रकार वात्सल्यमें अलौकिक आनन्द होता है, उसी प्रकार भक्तिमें भी जो भक्ति रस परमात्मा तक पहुँचाने वाला हो, उसकी इस प्रकार उपेक्षा कैसे की जा सकती है ।
अग्निपुराण के मत में रौद्र से करुण रसकी उत्पत्ति हुई, क्योंकि क्रोधमें आकर ऊटपटांग बकना, गालियाँ देना, मर्मवेधिनी बातें कहना, शेखी मारना आदि ऐसे कार्य हैं, जो लोगों के मर्मस्थलमें घाव कर उन्हें व्याकुल कर देते हैं, जिससे वे करुणा के पात्र बन जाते हैं। कुछ श्राचार्यों ने करुण रसको श्रृंगार से उत्पन्न हुआ माना है. वे कहते हैं कि करुण रस का स्थायीभाव शोक है, और शोक प्यारी वस्तु के लिएही किया जाता है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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