श्री गर्ग संहिता (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ | Sri-Garga-Samhita (Gita-Press) Hindi PDF

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श्री गर्ग संहिता (गीता प्रेस) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sri-Garga-Samhita (Gita-Press) Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : श्री गर्ग संहिता | इस ग्रन्थ के लेखक/प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1.3 GB हैं | पुस्तक में कुल 584 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Sri-Garga-Samhita | This book is written/published by : Gita Press, Gorakhpur | Approximate size of the PDF file of this book is: 1.3 GB. This book has a total of 584 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेसभक्ति, धर्म,1.3 GB584


पुस्तक से :

देवताओंने कहा- अहो! यह तो बड़े आश्चर्य की बात है, क्या अन्यान्य ब्रह्माण्ड भी हैं? हमने तो उन्हें कभी नहीं देखा. शुभे हम तो यही जानते हैं कि एक ही ब्रह्माण्ड है, इसके अतिरिक्त दूसरा कोई है ही नहीं॥ शतचन्द्रानना बोली- ब्रह्मदेव यहाँ तो विरजा नदीमें करोड़ों ब्रह्माण्ड इधर-उधर लुढ़क रहे हैं। उनमें भी आप जैसे ही पृथक-पृथक देवता वास करते हैं। अरे! क्या आपलोग अपना नाम गाँव तक नहीं जानते ? जान पड़ता है - कभी यहाँ आये नहीं हैं अपनी थोड़ी-सी जानकारी में ही हर्षसे फूल उठे हैं. जान पड़ता है, कभी घर से बाहर निकले ही नहीं। जैसे गूलर के फलोंमें रहनेवाले कीड़े जिस फल में रहते हैं, उसके सिवा दूसरेको नहीं जानते, उसी प्रकार आप जैसे साधारण जन जिसमें उत्पन्न होते हैं, एकमात्र उसीको 'ब्रह्माण्ड' समझते हैं॥


वहाँ श्यामवर्ण वाली उत्तम यमुना नदी स्वच्छन्द गति से बह रही है। तट पर बने हुए करोड़ों प्रासाद उसकी शोभा बढ़ाते हैं तथा उस नदीमें उतरने के लिये वैदूर्यमणि की सुन्दर सीढ़ियाँ बनी हैं। वहाँ दिव्य वृक्षों और लताओं से भरा हुआ 'वृन्दावन' अत्यन्त शोभा पा रहा है; भाँति-भाँति के विचित्र पक्षियों, भ्रमरों तथा वंशीवट के कारण वहाँ की सुषमा और बढ़ रही है। वहाँ सहस्रदल कमलों के सुगन्धित पराग को चारों ओर पुनः-पुनः बिखेरती हुई शीतल वायु मन्द गतिसे बह रही है। वृन्दावन के मध्यभागमें 32 वनों से युक्त एक 'निज निकुञ्ज' है। चहारदीवारियाँ और खाइयाँ उसे सुशोभित कर रही हैं। उसके आँगन का भाग लाल वर्णवाले अक्षयवटों से अलंकृत है पद्मरागादि सात प्रकार की मणियोंसे बनी दीवारें तथा आँगन के फर्श बड़ी शोभा पाते हैं. करोड़ों चन्द्रमाओं के मण्डल की छवि धारण करने वाले चंदोवे उसे अलंकृत कर रहे हैं तथा उनमें चमकीले गोले लटक रहे हैं. फहराती हुई दिव्य पताकाएँ एवं खिले हुए फूल मन्दिरों एवं मार्गोंकी शोभा बढ़ाते हैं। वहाँ भ्रमरों के गुजारव संगीतकी सृष्टि करते हैं तथा मत्त मयूरों और कोकिलों के कलरव सदा श्रवणगोचर होते हैं।

 


वहाँ बाल-सूर्य के सदृश कान्तिमान् अरुण पीत कुण्डल धारण करने वाली ललनाएँ शत-शत चन्द्रमाओं के समान गौरवर्ण से उद्भासित होती हैं। स्वच्छन्द गति से चलनेवाली वे सुन्दरियाँ मणिरत्नमय भित्तियों में अपना मनोहर मुख देखती हुई वहाँ के रत्नजटित आँगनों में भागती फिरती हैं। उनके गले में हार और बाँहों में केयूर शोभा देते हैं। नूपूरों तथा करधनीकी मधुर झनकार वहाँ गूँजती रहती है। वे गोपाङ्गनाएँ मस्तकपर चूड़ामणि धारण किये रहती हैं। वहाँ द्वार-द्वार पर कोटि-कोटि मनोहर गौओंके दर्शन होते हैं। वे गौएँ दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं और श्वेत पर्वत के समान प्रतीत होती हैं। सब की सब दूध देनेवाली तथा नयी अवस्थाकी हैं। सुशीला, सुरुचा तथा सद्गुणवती हैं। सभी सवत्सा और पीली पूँछ की हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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