वर्तमान भारत (स्वामी विवेकानन्द) हिन्दी पुस्तक । Vartaman Bharat : Swami Vivekananda Hindi Book PDF

                          

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वर्तमान भारत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vartaman Bharat Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: वर्तमान भारत | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द | पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB हैं | पुस्तक में कुल 72 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Vartaman Bharat. This book is written by: Swami Vivekananda. The book is published by: Shri Ramakrishna Aashram, Nagpur. Approximate size of the PDF file of this book is 1 MB. This book has a total of 72 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानन्द दर्शन लेख1 MB72



पुस्तक से : 

सब भोगों में अग्रभाग देवताओं को प्राप्य है, और देवताओंके मुख पुरोहित हैं। समाज उन्हें जानकर या बिना जाने पूरा समय देता है, और इससे वे लोग चिन्ताशील हुआ करते हैं। इसी कारण पहले-पहल विद्याकी उन्नति पुरोहितों के प्राधान्य-काल में होती है। राजा-रूपी भयानक सिंह और प्रजा-रूपी भयभीत बकरों के बीचमें पुरोहित ही खड़े रहते हैं। सिंह की सब कुछ नाश करनेकी इच्छा पुरोहितों के हाथ के अध्यात्म-बल-रूपी डण्डेसे रोकी जाती है। धन-जन के मद से मत्त राजाओंकी यथेच्छाचार-रूपी आगकी लपट सब किसी को जला सकती है, परन्तु धनजनविहीन, तपोबल-मात्र का भरोसा रखनेवाले पुरोहितोंके वचन-रूपी पानी से वह आग बुझ जाती है।

 

जड़ और चैतन्य को पहले पहल अलग करनेवाले, इहलोक और परलोक को मिलानेवाले, देव और मनुष्यके दूत, एवं राजा और प्रजाके बीच के पुल ये ही पुरोहित हैं। कितने ही कल्याणों के अंकुर इन्हीं के तपोबल से, इन्हीं के विद्या प्रेम, इन्हीं के त्याग और इन्हीं के प्राणसिंचन से पनपते हैं। इसीलिये सब देशोंमें पहली पूजा इन्हीं ने पाई है और इसीलिए उनकी स्मृति भी हम लोगों के लिए पवित्र है।

 

 

बिना अभ्यास और वितरणके प्रायः सभी विद्याएँ नष्ट हो जाती हैं और जो बच भी जाती हैं, वे अलौकिक दैवी उपायसे प्राप्त समझी जाने के कारण उनके सुधारनेका प्रयत्न भी व्यर्थ समझा जाता है, नई विद्या सीखना तो अलग रहा। उसके बाद वह विद्याहीन, पुरुषार्थहीन और अपने पूर्वजोंका नाम मात्र रखनेवाला पुरोहित कुल अपने पैतृक अधिकार, पैतृक सम्मान और पैतृक आधिपत्य को बनाये रखनेके लिए जिस-तिस उपाय से यत्न करता है ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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