अन्त्यकर्म - श्राद्धप्रकाश हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Antyakarm Shraddh Prakash Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : अन्त्यकर्म - श्राद्धप्रकाश | इस पुस्तक के लेखक हैं : अज्ञात | पुस्तक का प्रकाशन किया है : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 393 MB हैं | पुस्तक में कुल 442 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Antyakarm Shraddh Prakash. This book is written by : Unknown. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 393 MB. This book has a total of 442 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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अज्ञात | धार्मिक | 393 MB | 442 |
पुस्तक से :
इस अतीन्द्रिय शरीर से ही जीवात्मा अपने द्वारा किये हुए धर्म और अधर्म के फलस्वरूप ही सुख या दुख भोगता है। इसी सूक्ष्म शरीर से पाप करनेवाले मनुष्य याम्यमार्ग की यातनाएँ भोगते हुए यमराज के पास जाता हैं एवं धार्मिकजन प्रसन्नतापूर्वक सुख-भोग करते हुए धर्मराज के पास जाते हैं। साथ ही यह बात भी ध्यान देने के लायक है कि केवल मनुष्य ही मृत्यु के पश्चात् एक आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर धारण करते हैं तथा उसी शरीर को ही यमपुरुषों के द्वारा याम्यपथ से होते हुए यमराज के पास ले जाया जाता है।
नरक से जो रक्षा करता है, वही पुत्र है। सामान्यतः किसी भी जीव से इस जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं। पुण्य का फल स्वर्ग है जबकि पाप का फल नरक में है। नरक में पापी को घोर यातनाएँ दी जाती हैं। स्वर्ग या नरक भोगने के बाद जीव पुनः अपने कर्मों के अनुसार चौरासी लाख योनियों में भटकने लगता है। पुण्यात्मा मनुष्य योनि अथवा देवयोनि प्राप्त करते हैं।
बृहत्पाराशर में ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध में मांस देनेवाला व्यक्ति मानो चन्दन की लकड़ी जलाकर उसका कोयला बेचता है। वह तो ऐसा ही मूर्ख है जैसे कोई बालक कूएँ में अपनी वस्तु डालकर फिर उसे पाने की इच्छा रखता हो। श्रीमद्भागवत में भी कहा गया है कि न तो कभी मांस खाना चाहिये और न ही श्राद्धमें ही देना चाहिये।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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