अष्टावक्र गीता हिन्दी पुस्तक | Ashtavakra Gita Hindi Book PDF

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अष्टावक्र गीता हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ashtavakra Gita Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : अष्टावक्र गीता | इस ग्रन्थ मूल के रचनाकार हैं : अष्टावक्र | इस पुस्तक के संपादक/प्रकाशक हैं : अज्ञात. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 44 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 35 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Ashtavakra Gita | This book is originally written by : Ashtavakra | This book is edited/published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is: 44 MB. This book has a total of 35 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अष्टावक्रभक्ति, धर्म44 MB35


पुस्तक से :

सभा विसर्जित हो गई है। राजा जनकके आदेशानुसार उनके प्रधान पुरोहित अष्टावक्र और श्वेतकेतु को कहोड़ सहित विश्राम स्थल पर ले जा रहे हैं। श्वेतकेतुको अब तक का घटनाक्रम एक अजूबा-सा लग रहा है उसे विश्वास नहीं हो रहा है कि उसके जीजा अचानक प्रकट हो चुके हैं। वह बार-बार अपने तेजस्वी बहनोई को देख रहा है और अपनी बहन सुजाता को याद कर रहा है, जिसने अपने बहुमूल्य जीवनका एक बड़ा भाग अनायास ही वैधव्य में काट दिया।

 

अपनी प्रिय पत्नी की याद करके कहोड़ गंभीर हो गए हैं। सचमुच उस बेचारी ने अपने जीवन में सुख नहीं देखा। विवाहके तुरंत बाद गर्भावस्था में हुआ वह भयंकर हादसा, विकलांग पुत्र का जन्म और फिर असमय वैधव्य! अब वह बेचारी पुत्र विछोह सह रही होगी।

 


अल्पायु महाज्ञानी अष्टावक ने एक गुरु की भाँति राजा जनकसे कहा, "हे प्रिय, यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विष रूपी विषयों को त्याग दो। इससे तुम्हें सद्गुण ग्रहण करने लायक पात्रता प्राप्त होगी। अभी इस पात्रमें विषय रूपी जहर विद्यमान है। यदि इस समय इसमें अमृत भी उड़ेला गया तो वह भी जहर बन जाएगा। एक बार इन विषयों को त्याग दोगे तो तुम्हारा अंतःकरण स्वच्छ हो जाएगा और फिर उस पात्र में क्षमा, सरलता, दया, संतोष और सत्य को डालो। इन अमृत रूपी गुणोंको धारण करना आवश्यक है।"

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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