भारतीय नारी हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhartiya Nari Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है: भारतीय नारी | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द | पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB हैं | पुस्तक में कुल 114 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Bhartiya Nari. This book is written by: Swami Vivekananda. The book is published by: Shri Ramakrishna Aashram, Nagpur. Approximate size of the PDF file of this book is 2 MB. This book has a total of 114 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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स्वामी विवेकानन्द | प्रेरक | 2 MB | 114 |
पुस्तक से :
प्रत्येक भारतवासी भगवान श्रीरामचन्द्र और माता सीताजीके जीवनको आदर्श मानता है। प्रत्येक बालिका सीताजीके भव्य आदर्शकी आराधना करती है। भारतवर्षंकी प्रत्येक स्त्रीकी यह आकांक्षा है कि वह अपने जीवनको भगवती सीताके समान पवित्र भक्तिपूर्ण और सर्वसह बनाए। सीताजी और भगवान श्रीरामचन्द्रके चरित्रों के अध्ययनसे भारतीय आदर्श का पूर्ण ज्ञान हो सकता है। जीवन के पाश्चात्य और भारतीय आदर्शों में भारी अन्तर है | सीताजीका चरित्र हमारी जाति के लिए सहनशीलताका आदर्श है। पाश्चात्य संस्कृति कहती है कि तुम यन्त्रवत् कार्यमें लगे रहो और अपनी शक्ति का परिचय कुछ भौतिक ऐश्वर्य प्राप्त करके दिखाओ। भारतीय आदर्श, इसके विपरीत, कहता है कि तुम्हारी महानता दुःखों को सहन करनेकी शक्ति में है।
यदि हम विश्व के भूतकालीन साहित्यको सोजे, और भविष्य में होनेवाले साहित्यका भी मंथन करने के लिए तैयार रहे तो भी हमें सीताजीके समान भव्य आदर्श कही प्राप्त नहीं होगा| सोताजी का चरित्र अद्भुतरम्य है, सोताजीके जीवन चरित्र का उद्भव विश्व इतिहासकी वह घटना है, जिसकी पुनरावृत्ति असम्भव है। यह सम्भव है कि विश्व में अनेक रामका जन्म हो, परन्तु दूसरी सीता कल्पनातीत है। सीताजी भारतीय नारीत्वकी उज्ज्वल प्रतीक है। पूर्ण विकसित नारीत्यके सभी भारतीय आदर्शों का मूल प्रस्रवण वही एकमात्र सीता-चरित्र हैं।
चाहे हमारा सारा पुराण- साहित्य लुप्त हो जाय, संस्कृत भाषा और वेदभी सदा के लिए नष्ट हो जायँ, फिर भी जब तक जंगली-से-जंगली भाषा बोलनेवाले पाँच हिन्दू विद्यमान हैं, तब तक सीताजीका गुणगान होता रहेगा। वास्तव में सीताजी इस राष्ट्रका प्राण हैं। प्रत्येक हिन्दू स्त्री और पुरुषके रक्त में सीताजी का आदर्श विद्यमान है, हम सब उसी माता सीताकी सन्तान हैं | यदि हम भारतीय स्त्रियोंको आधुनिक रूप देनेके उद्देश से उन्हें सीताके आदर्श से वंचित करनेका प्रयत्न करें, तो जैसा कि हम प्रतिदिन देखते हैं, हमारा यह प्रयत्न उसी क्षण विफल सिद्ध होगा।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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