भारतीय वास्तु शास्त्र हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhartiya Vastu Shastra Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है: भारतीय वास्तु शास्त्र | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. द्विजेंद्र नाथ शुक्ल | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 10 MB हैं | पुस्तक में कुल 276 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Bhartiya Vastu Shastra. This book is written by: Dr Dwijendra Nath Shukla. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 10 MB. This book has a total of 276 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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डॉ. द्विजेंद्र नाथ शुक्ल | ज्योतिष | 10 MB | 276 |
पुस्तक से :
महाराज भोजदेव की जीवन-गाथा भारतीय इतिहासमें इने गिने राजर्षियो की गाथामे एक है। प्राप्त एवं अर्ध प्राप्त भारतीय ऐतिहासिक सामग्री में राजर्षी 'प्रियदर्शि' अशोक, महाप्रतापी महाराज विक्रमादित्यके बाद भारतीय जन-समाजमें प्रतिप्रसिद्ध राजा भोज ही हुआ है। महाराज विक्रमादित्य का यदि न्याय प्रसिद्ध है तो महाराज अशोकका धर्म प्रचार और महाराज भोजदेव की साहित्यिक गरिमा। भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विकास-परम्परा में धर्म एवं दर्शनके बाद ही साहित्यका स्थान आता है। वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, सूत्रग्रन्थ, पुराण एवं स्मृतियोंके बाद ही, अर्थात् श्रुति एवं स्मृतिके उपरान्त ही लौकिक साहित्य – काव्य, नाटक, अलंकार, ध्वनि, कथा तथा आख्यायिका आदि का विकास पाया गया है।
हमारे देशकी प्राचीन परम्परा में जिन-जिन विद्याका एक साथ उल्लेख हुआ है उनमे वास्तु-विद्या का समुल्लेख नहीं देख पढ़ता। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि वास्तु-विद्या विद्या स्थानको ही नहीं प्राप्त थी। आवश्यकता आविष्कारोंकी जननी कही गई है। और भवन सम्बन्धी आवश्यकता मानवता एवं मानव सभ्यताके साथ साथ सनातन से सर्वत्र रही है। ऋग्वेद में ही वास्तु सम्बन्धी बहुल संकेत हैं जिनसे तत्कालीन वास्तु-विद्या एवं वास्तु कलाका सुदृढ़ अनुमान किया जा सकता है। यही नहीं सिन्धु नदीकी सभ्यता मे तो वास्तुकला के विकास की सुन्दर उन्नति के सुदृढ़ निदर्शन प्राप्त हुये हैं। अतः वास्तु- विद्या का मानव सभ्यतामें एक अत्यन्त आवश्यक ज्ञान सनातन से सर्वत्र रहा है |
यहाँ पर एक प्रश्न यह है कि भारतीय वास्तु कला पर जो अनुसन्धानात्मक एवं गवेषणात्मक ग्रंथ पाश्चात्य एवं पूर्वीय विद्वानों ने लिखे हैं, उनमें भारतीय वास्तु कलाका प्रारम्भिक विकास मौर्यकाल से मानते हैं तथा महाराज अशोकके ही राज्यकालसे वास्तु कला एवं प्रस्तर कला का विकास बताते हैं। इस सम्बन्ध में भी यही कहा जा सकता है कि महाराज अशोकने जिन विभिन्न लाटें, स्तूप, चैत्य तथा शिला लेख इत्यादि का निर्माण कराया, उनका एकमात्र उद्देश्य बौद्ध धर्मका प्रचार एवं संरक्षण था।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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