भाषा विज्ञान हिन्दी पुस्तक | Bhasha Vigyan Hindi Book PDF

                                           

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भाषा विज्ञान हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhasha Vigyan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : भाषा विज्ञान | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. भोलानाथ तिवारी |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : किताब महल प्राइवेट लिमिटेड, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 25 MB हैं | पुस्तक में कुल 604 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Bhasha Vigyan. This book is written by : Dr Bholanath Tiwari. The book is published by : Kitab Mahal Private Limited, Prayagraj. Approximate size of the PDF file of this book is 25 MB. This book has a total of 604 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. भोलानाथ तिवारीसाहित्य25 MB604



पुस्तक से : 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसे समाज में रहने के लिए उसे सर्वदा आपस में विचार-विनिमय करना ही पड़ता है। कभी हम स्फुट शब्दों या वाक्यों द्वारा अपने को प्रकट करते हैं, तो कभी केवल अपना सिर हिलाने से भी हमारा काम चल जाता है। समाज के धनी वर्ग में निमंत्रण देने के लिए पत्र छपवाये जाते हैं, तो गरीबों में या कुछ पिछड़ी जातियों में हल्दी या सुपारी देना ही पर्याप्त होता है। स्काउट लोगों का विचार-विनिमय झंडियों के माध्यम से होता है, तो वही चार बिहारी लोग अँधेरे में एक दूसरे का हाथ दबाकर ही अपने को प्रकट कर लिया करते है। इसी प्रकार करतल-ध्वनि, हाथ हिलाकर संकेत करना , चुटकी बजाना, आँख घुमाना, आँख दवाना, खाँसना, मुंह विचकाना या टेढ़ा करना, उँगली दिखाना तथा गहरी साँस लेना आदि अनेक प्रकार के साधनों के द्वारा हमारे विचार-विनिमय का कार्य होता है।

 

भाषा अध्ययन और विश्लेषण के योग्य होती है। भाषा-विज्ञान की अपनी सीमाओं के कारण भाषा की विशेषताओं में इसे स्थान देना पड़ रहा है। इसका अर्थ यह है कि उच्चारणोपयोगी अवयवों से निःस्तृत और सार्थक होते हुए भी यदि कोई ध्वनि-समष्टि ऐसी है, जिसका अध्ययन विश्लेषण संभव नहीं है तो उसे भाषा में स्थान नहीं दे सकते। 'चुम्बन' की ध्वनि कुछ इसी प्रकार की मानी जाती रही है। इस प्रकार की बहुतसी अन्य ध्वनियाँ जैसे घोड़ा चलाने की टिक्-टिक् जैसी या इनकार करने को चिक्-जैसी या चूं, चाँ, फट आदि ध्वनि भी लगभग सभी भाषाओं में मिलती हैं। वस्तुतः यह हमारे अध्ययन की कमी रही है।

 

 

यूरोप और अमेरिका के विद्वानों ने एकाधिक बार इसे स्पष्ट शब्दों में स्वीकार भी किया है। वर्णनात्मक भाषा-विज्ञान में प्रायः जीवित भाषाओं का ही अध्ययन होता है, किन्तु प्राचीन भाषाओं का भी अध्ययन किया जा सकता है। आगे हम देखेंगे कि भाषा-विज्ञानमें ध्वनि, रूप, वाक्य, अर्थ आदि का अध्ययन होता है, किन्तु वर्णनात्मक भाषा विज्ञान के विद्वान् इसमें भाषाके केवल ध्वनि, रूप और वाक्य का ही अध्ययन करने के पक्ष में हैं। अर्थ का अध्ययन इसके क्षेत्र से बाहर माना जाता रहा है ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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