भवन भास्कर (वास्तु शास्त्र) हिन्दी पुस्तक | Bhavan Bhaskar (Vastu Shastra) Hindi Book PDF

 

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भवन भास्कर (वास्तु शास्त्र) हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhavan Bhaskar (Vastu Shastra) Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : भवन भास्कर (वास्तु शास्त्र) | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : राजेंद्रकुमार धवन. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 35 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 80 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Bhavan Bhaskar (Vastu Shastra) | This book is written/edited by : Rajendra Kumar Dhavan. This book is published by : Gita-Press Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is: 35 MB. This book has a total of 80 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
राजेंद्रकुमार धवनधर्म, ज्योतिष35 MB80


पुस्तक से :

"वास्तु' शब्दका अर्थ है- निवास करना (वस निवासे) । जिस भूमिपर मनुष्य निवास करते हैं, उसे 'वास्तु' कहा जाता है। कुछ वर्षों से लोगों का ध्यान वास्तुविद्या की ओर गया है। प्राचीनकाल में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर चौंसठ कलाओं (विद्याओं) की शिक्षा प्राप्त करते थे, जिनमें वास्तुविद्या भी सम्मिलित थी। हमारे प्राचीन ग्रन्थोंमें ऐसी न जाने कितनी विद्याएँ छिपी पड़ी हैं, जिनकी तरफ अभी लोगोंका ध्यान नहीं गया है।

 

हमारा कर्तव्य शास्त्रकी आज्ञाका पालन करना है और प्रारब्धके अनुसार जो परिस्थिति मिले, उसमें सन्तुष्ट रहना है। प्रारब्धका उपयोग केवल अपनी चिन्ता मिटानेमें है। 'करने' का क्षेत्र अलग है और 'होने' का क्षेत्र अलग है। हम व्यापार आदि 'करते' हैं और उसमें लाभ या हानि 'होते' हैं। 'करना' हमारे हाथ में (वशमें) है, 'होना' हमारे हाथमें नहीं हैं। इसलिये हमें 'करने' में सावधान और 'होने' में प्रसन्न रहना है।

 


वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट तो दूर हो जाते हैं, पर प्रारब्धजनित कष्ट तो भोगने ही पड़ते हैं। जैसे- औषध लेनेसे कुपथ्यजन्य रोग तो मिट जाता है, पर प्रारब्धजन्य रोग नहीं मिटता। वह तो प्रारब्धका भोग पूरा होने पर ही मिटता है। परन्तु इस बातका ज्ञान होना कठिन है कि कौन सा रोग कुपथ्यजन्य है और कौन-सा प्रारब्धजन्य? इसलिये हमारा कर्तव्य यही है कि रोग होने पर हम उसकी चिकित्सा करें, उसको मिटाने का उपाय करें। इसी तरह कुवास्तुजनित दोषको दूर करना भी हमारा कर्तव्य है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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