चिन्ता छोड़ो सुख से जीयो - डेल कारनेगी हिन्दी पुस्तक | Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo - Dale Carnegie Hindi Book PDF

                                        

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चिन्ता छोड़ो सुख से जीयो हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : चिन्ता छोड़ो सुख से जीयो | इस पुस्तक के लेखक हैं : डेल कारनेगी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : डी. बी. तारापोरवाला सन्स एंड कम्पनी प्राइवेट लि. | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 12 MB हैं | पुस्तक में कुल 306 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo. This book is written by : Dale Carnegie. The book is published by : D B Taraporawala Sons And Company Pvt. Ltd . Approximate size of the PDF file of this book is 12 MB. This book has a total of 306 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डेल कारनेगीप्रेरक12 MB306



पुस्तक से : 

एक नवयुवक ने एक पुस्तक पढी। उसके एक वाक्य ने उसके भविष्य को अत्यन्त प्रभावित किया। यह युवक मॉन्ट्रियल जनरल हॉसिटल में चिकित्सा शास्त्र का विद्यार्थी था। उसे निर्णायक परीक्षा में सफलता प्राप्त करने की बहुत चिन्ता होती थी। क्या करे ? कहाँ जाए ? चिकित्सक वृत्ति कैसे स्थापित करे तथा जीविकोपार्जन कैसे करे ? ऐसी कई चिन्ताऍ थी जो उसे घेरे रहती थी। उस वाक्य ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह अपने समय का एक यशस्वी चिकित्सक बन गया | उसने विश्व विख्यात 'जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन्स' का नवगठन किया तथा ऑक्सफोर्ड के चिकित्सा शान्त्र विभाग में रेजियस प्राध्यापक नियुक्त हुआ।

 

इस प्रार्थना में केवल आज की रोटी की ही याचना है इसके अतिरिक्त ओर कुछ भी नहीं । आज की रोटी ही आपकी है। वर्षों पहले की बात है एक निर्धन दार्शनिक था, वह किसी पथरीले प्रातर मे भटक रहा था। वहाँ के निवासी बड़ी ही कठिनाईयो से अपना जीवन निर्वाह करते थे। एक दिन एक पहाड़ी पर, वे लोग उसके आस पास जमा हो गये। दार्शनिक ने उनके समक्ष भाषण किया। उस भाषण को अब तक सब से अधिक उधृत किया गया है। सदियो से उस भाषण के वे शब्द निरन्तर गूंजते चले आ रहे हैं। उस दार्शनिक का कथन या, "कल की चिन्ता छोड़ दो, आज की कठिनाइयां ही आज के लिये क्या कम है?"

 

 

हाल ही में मने न्यूयॉर्क टाइम्स के एक प्रकाशक आर्थर हेल से मुलाकात की थी। उन्होंने मुझे बताया कि युरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के छिड़ने के समय वे अपने भविष्य के विषय में इतने अधिक चिन्तित हो गये थे कि उनकी नींद तक हराम हो गयी थी। प्रायः अर्धरात्रि के समय उठ कर वे केनवास और रग लिये शीशे के सामने जा बैठ जाते थे और अपनी तस्वीर बनाने का प्रयास करते थे। चित्रकारी के सम्बन्ध में उनका कोई अनुभव भी नहीं था किन्तु फिर भी अपने मस्तिष्क से चिन्ता हटाने के लिये वे जैसे-तैसे कुछ न कुछ बना ही लेते थे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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