गन्धर्व तन्त्र हिन्दी पुस्तक | Gandharv Tantra Hindi Book PDF

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गन्धर्व तन्त्र हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gandharv Tantra Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : गन्धर्व तन्त्र | इस पुस्तक के संपादक/भाष्यकार हैं : आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 723 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 711 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Gandharv Tantra | This book is edited/translated by : Acharya Radheshyam Chaturvedi. This book is published by : Chaukhamba, Sanskrit Series Office, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is: 723 MB. This book has a total of 711 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदीतंत्रसाधना, धर्म723 MB711


पुस्तक से :

आदिशक्ति वेदमाता गायत्री सद्ज्ञान परमज्ञानकी जननी है। योग, तन्त्र एवं वेदान्त का ज्ञान भी उन्हींकी कोखमें पलता और उन्हीं से प्रकट होता है । ॐ कार एवं त्रिव्याहतियों सहित महामन्त्रके चौबीस अक्षरोंमें तीनों लोकोंका ज्ञान समाया है। ये अक्षर जब अनुलोमक्रम में प्रकट एवं परिभाषित होते हैं तो इनसे योगके तत्त्व एवं विधियाँ प्रकाशित होती है। यही अक्षर जब विलोम क्रममें अपनी अभिव्यक्ति करते हैं तो इनसे तन्त्रके सभी गोपनीय तत्त्व एवं क्रियाओंका प्रकाश होता है। योग एवं तन्त्रकी सभी विधियाँ जब अनुभवोंके परम आकाश में मिलती हैं तो वेदान्तका परम तत्त्व प्रकाशित होता है।

 

विश्व के समस्त प्राणी विशेष रूप से मनुष्य यह चाहते हैं कि हमे दुःख न हो, सुख मिले। वह भी नित्य और निरतिशय हो। आगम, निगम, संसार के विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनादिकाल से प्रयासरत है। भारतीय मनीषा ने इसके लिये ज्ञान कर्म और उपासना नामक विधियोंका प्रचलन किया। सृष्टिकी कारणभूता सर्वोच्च सत्ता का स्वरूप ज्ञानमय तथा आनन्दमय है। सत् तो वह है ही उसकी यह ज्ञानानन्दमयता नित्य और निरतिशय है।

 


वेदोंकी भाँति तन्त्र भी अनादि हैं क्योंकि वे भी शिवमुखोंसे आर्विभूत हैं। इसके अतिरिक्त अनादि वेदोंमें आने वाले अगस्त्य  लोपामुद्रा आदि के नाम भी तान्त्रिकोंकी सूची में है। लोपामुद्रा त्रिपुरसुन्दरी की तथा इनके पिता भगमालिनी के उपासक थे। अघोरतन्त्रके आविष्कारक भगवान् शिव आदिनाथ कहे जाते हैं। अत: अनेक प्रमाणोंसे तन्त्रशास्त्रकी अनादिता सिद्ध होती है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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