ग्रह नक्षत्र हिन्दी पुस्तक | Graha Nakshatra Hindi Book PDF

                                       

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ग्रह नक्षत्र हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Graha Nakshatra Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : ग्रह नक्षत्र | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री त्रिवेणी प्रसाद सिंह |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 9 MB हैं | पुस्तक में कुल 133 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Graha Nakshatra. This book is written by : Shri Triveni Prasad Singh. The book is published by : Bihar Rashtrabhasha Parishad, Patna . Approximate size of the PDF file of this book is 9 MB. This book has a total of 133 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री त्रिवेणी प्रसाद सिंहधार्मिक, ज्योतिष9 MB133



पुस्तक से : 

आश्चर्य की बात है कि ताराओं को नित्य देखते रहने पर भी अधिकतर लोग उनका परिचय प्राप्त करनेकी चेष्टा नहीं करते। इसका एक कारण तो यह है कि घड़ियों के प्रचार, मानचित्र, सड़क, रेलगाड़ी इत्यादि के हो जाने से समय तथा दिशा के ज्ञान के लिए लोगोंको ताराओं की शरण नहीं लेनी पड़ती। पर अबतक भी समुद्री जहाज तथा हवाई जहाज इन्हीं के सहारे चलते हैं। वैद्यशालाओ की घड़ियाँ ताराओंसे ही मिलाई जाती हैं। और फिर इनसे और घड़ियाँ । ताराओं के ज्ञानका उपयाग जनसाधारण के नित्य जीवनमें तो दिशा तथा समय का निरूपण भर है; परन्तु विज्ञानके लिए ताराओं के महत्त्व की सीमा नहीं है। ताराओं के अध्ययनके लिए ही तथा उनके क्रमबद्ध भ्रमण से प्रेरित होकर विज्ञानों की कुंजी गणितशास्त्र की उत्पत्ति हुई।

 

वास्तव में सूर्य अन्य नाक्षत्र ताराओं के समान है; परन्तु पृथ्वी के समीप होनेसे उसका प्रकाश अत्यन्त प्रखर है। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, इन्द्र, वरुण तथा प्लूटो – ये सब क्रमशः सूर्य के चतुर्दिक दीर्घवृत्त बनाते भ्रमण करते हैं। चन्द्रमा पृथ्वीके चारों ओर भ्रमण करता है। इसीलिए चन्द्रमाको उपग्रह कहते हैं। पृथ्वी के एक निश्चित धुरी पर भ्रमण के फलस्वरूप नक्षत्रोंका खगोल एक निश्चित धुरी पर घूमता दिखाई देता है। खगोल के उत्तर ध्रुव के समीप ध्रुव तारा है जो आँखोंको सदा स्थिर दिखाई देता है। पृथ्वी के किसी एक स्थानसे किसी समय खगोल का अर्द्धाश ही दिखाई देता है। पृथ्वी के उत्तर अथवा दक्षिण ध्रुव से सदा खगोलका उत्तरी अथवा दक्षिणी भागही दिखाई देता है।

 

 

वर्ष-भर में पृथ्वी जो सूर्यके चारों ओर दीर्घवृत्त बनाती भ्रमण करती है तो ऐसा मालूम होता है मानो खगोल पर सूर्यका स्थान नित्य प्रति बदल रहा हो। खगोल पर सूर्यके स्थान का निरूपण प्राचीन कालमें ज्योतिषियों ने चन्द्रमा की सहायता से किया था। सूर्य के प्रकाशमें भी चन्द्रमा दिखाई देता है। दिन में सूर्य तथा चन्द्रमाकी परस्पर दूरी माप कर रात्रि में अन्य ताराओंकी अपेक्षा चन्द्रमा का स्थान ठीक-ठीक निश्चय किया जा सकता है। सूर्य नित्यप्रति थोड़ा-थोड़ा पश्चिमसे पूरब हटते हुए एक वर्षमें खगोल की एक परिक्रमा करता है। इस प्रकार सूर्य खगोल को दो बराबर भागों में बाँटते हुए एक वलय बनाता है, जिसका केन्द्र दर्शक है। इस वृत्त को क्रान्ति-वलय कहते हैं ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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