गुप्त धन - प्रेमचंद हिन्दी पुस्तक | Gupt Dhan Hindi Book PDF

                                 

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गुप्त धन हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gupt Dhan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: गुप्त धन | इस पुस्तक के लेखक हैं : प्रेमचंद |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : हंस प्रकाशन, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 21 MB हैं | पुस्तक में कुल 277 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Gupt Dhan. This book is written by: Premchand. The book is published by: Hans Prakashan,Prayagraj. Approximate size of the PDF file of this book is 21 MB. This book has a total of 277 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
प्रेमचंदउपन्यास, कहानी21 MB277



पुस्तक से : 

पहले कुछ दिनों तक तो वह अस्थिरचित्त सा हो गया था। दो-चार दिन भी दशा सँभली रहती तो पुस्तके देखने लगता और विलायत यात्राकी चर्चा करता। दो-चार दिन भी ज्वरका प्रकोप बढ जाता तो जीवन से निराश हो जाता। किन्तु कई मासके पश्चात् जब उसे विश्वास हो गया कि इस रोगसे मुक्त होना कठिन है तब उसने जीवनकी भी चिन्ता छोड़ दी। पथ्यापथ्य का विचार न करता, घरवालो की निगाह बचाकर औषधियाँ जमीन पर गिरा देता। मित्रोके साथ बैठकर जी बहलाता। यदि कोई उससे स्वास्थ्य के विषय मे कुछ पूछता तो चिढकर मुँह मोड लेता। उसके भावोंमें एक शान्तिमय उदासीनता आ गई थी और बातोमे एक दार्शनिक मर्मज्ञता पाई जाती थी।

 

आघी रात तक घरमे प्रभुदास को इटली भेजने के प्रस्ताव पर वाद-विवाद होता रहा। चैतन्यदास का कथन था कि एक संदिग्ध फलके लिए तीन हजार का खर्च उठाना बुद्धिमत्ता के प्रतिकूल है। शिवदास भी उनसे सहमत था किन्तु उसकी माता इस प्रस्तावका बड़ी दृढ़ता के साथ अनुमोदन कर रही थी। अन्त में माताकी धिक्कारो का यह फल हुआ कि शिवदास लज्जित होकर उसके पक्षमें हो गया। बाबू साहब अकेले रह गये। तपेश्वरी ने तर्क से काम लिया।

 

 

आज तीन साल हुए जब मैंने इस घरमें कदम रक्खा। उस वक्त यह एक हरा भरा चमन था। मैं इस चमन की बुलबुल थी, हवा में उड़ती थी, डालियो पर चहकती थी, फूलों पर सोती थी। सईद मेरा था, मै सईदकी थी। इस संगमरमर के हौज़के किनारे हम मुहब्बतके पांसे खेलते थे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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