हिंदी व्याकरण - कामताप्रसाद हिन्दी पुस्तक | Hindi Vyakaran Hindi Book PDF

                                  

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हिंदी व्याकरण हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Hindi Vyakaran Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: हिंदी व्याकरण | इस पुस्तक के लेखक हैं : पंडित कामताप्रसाद गुरू |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : इंडियन प्रेस लिमिटेड, प्रयाग | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 21 MB हैं | पुस्तक में कुल 696 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Hindi Vyakaran. This book is written by: Pandit Kamtaprasad Guru. The book is published by: Indian Press Limited, Prayag. Approximate size of the PDF file of this book is 21 MB. This book has a total of 696 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित कामताप्रसाद गुरुसाहित्य,भाषा21 MB696



पुस्तक से : 

भाषागत विचार प्रकट करनेमें एक विचार के प्राय: कई अंश प्रकट करने पड़ते है। उन सभी अंशों के प्रकट करने पर उस समग्र विचारका मतलब अच्छी तरह समझ में आता है। प्रत्येक पूरी बात को वाक्य कहते हैं। प्रत्येक वाक्यमे प्राय: कई शब्द रहते है । प्रत्येक शब्द एक सार्थक ध्वनि है जो कई मूल ध्वनियों के योगसे बनती है। जब हम बोलते हैं तब शब्दोंका उपयोग करते हैं और भिन्न भिन्न प्रकार के विचारों के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के शब्दों को काम मे लाते है । यदि हम शब्दका ठीक ठीक उपयोग न करें तो हमारी भाषा में बड़ी गडबड़ पड़ जाय और संभवत, कोई हमारी बात न समझ सके । यद्यपि भाषा मे जिन शब्दोका उपयोग किया जाता है वे किसी न किसी कारण से कल्पित किये गये है, तो भी जो शब्द जिस वस्तुका सूचक है उसका इससे, प्रत्यक्ष में, कोई संबंध नहीं।

 

भाषा मे यह भी देखा जाता है कि कई शब्द दूसरे शब्दोंसे बनते है और उनसे एक नया ही अर्थ पाया जाता है। वाक्य में शब्दोंका उपयोग किसी विशेष क्रम से होता है और उनमें रूप अथवा अर्थ के अनुसार परस्पर संबंध रहता है। इस अवस्थामें यह आवश्यक है कि पूर्णता और स्पष्टतापूर्वक विचार प्रकट करने के लिए शब्दों के रूपों तथा प्रयोग में स्थिरता और समानता हो । जिस शास्त्रमे शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग के नियमों का निरूपण होता है उसे व्याकरण कहते हैं।

 

 

कुछ विद्वानोंका अनुमान है कि मनुष्य पहले पहल एशिया खंड के मध्य भाग में रहता था। जैसे जैसे उसकी संतति बढ़ती गई क्रम क्रम से लोग अपना मूल स्थान छोड़ अन्य देशों में जा बसे । इसी प्रकार यह भी एक अनुमान है कि नाना प्रकारकी भाषाएँ एकही भाषा से निकली हैं। पाश्चात्य विद्वान् पहले यह समझते थे कि इब्रानी भाषा से, जिसमें यहूदी लोगोंके धर्मग्रंथ हैं, सब भाषाएँ निकली हैं, परंतु उनमें संस्कृत का ज्ञान बढ़ने और शब्दों के मूल रूपों का पता लगनेसे यह सिद्ध हुआ है कि एक ऐसी आदिम भाषासे, जिसका अब पता लगना कठिन है,

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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