जाति संस्कृति और समाजवाद - स्वामी विवेकानंद हिन्दी पुस्तक | Jati Sanskriti Aur Samajavad - Swami Vivekananda Hindi Book PDF

                                             

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जाति संस्कृति और समाजवाद हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Jati Sanskriti Aur Samajavad Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : जाति संस्कृति और समाजवाद | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी विवेकानन्द |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB हैं | पुस्तक में कुल 108 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Jati Sanskriti Aur Samajavad. This book is written by : Swami Vivekananda. The book is published by : Shri Ramakrishna Ashram, Nagpur. Approximate size of the PDF file of this book is 2 MB. This book has a total of 108 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानन्दसमाज,संस्कृति2 MB108



पुस्तक से : 

स्वामीजी ने उस आदर्श तक पुनः उन्नति करने के उपायों का भी निर्देश किया है। स्वामीजी खुद समाजवाद के बहुत बड़े प्रेमी थे, पर वे चाहते थे कि उसका आधार यावत् अस्तित्वका आध्यात्मिक एकत्व हो। वे समाज में क्रान्ति लाना चाहते थे, पर उनकी इच्छा यह नहीं थी कि वह हिमात्मक हो अथवा वे विप्लव का रूप धारण करे, बल्कि उसकी बुनियाद पारस्परिक प्रेम तथा अपनी संस्कृति की यथार्थ जानकारी हो । वे इस बात से भी सहमत नहीं थे कि समाज में समता स्थापित करनेके लिए हम पाश्चात्यो का अन्धानुकरण करें, बल्कि वे चाहते थे कि हम अपनी संस्कृति एवं आध्यात्मिकता द्वारा परिचालित हो । वे मानते थे की विकास सदैव भीतरसे ही होना चाहिए।

 

भिन्न-भिन्न मानव-वंशों के संयोग से हमारे वर्तमान समाजों, रीतियों और रूढ़ियों का विकास होना प्रारम्भ हुआ । नए विचार आते गए और नए विज्ञानों का विकास होने लगा। जो लोग बहुत चालाक थे, उन्होंने वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का काम अपने ऊपर लिया, और वे इस कार्य के पारिश्रमिक शुल्क के बहाने लाभ का अधिकांश भाग स्वयं ही लेने लगे । पहले किसानों ने भूमि जोतकर खेती की, दूसरे लोगो ने उसकी पैदावारी को लूट-पाट से बचाने उद्देश्य से उसकी रखवाली की, तीसरे ने उस पैदावारी को किसी दूसरी जगह पहुंचाने का काम किया तथा चौथे ने उसे खरीद लिया ।

 

 

आर्यों का उद्देश है सभी को ऊपर उठाकर अपने समकक्ष बनाना; इतना ही नहीं, बल्कि अपने से भी ऊंचे स्तर पर पहुँचाना। यूरोपीय सभ्यता का साधन तलवार है और आर्य सभ्यता का साधन हैं विभिन्न वर्ण-विभाग, यही इनकी ताकत है | भिन्न-भिन्न वर्णो में विभाजित करने का यह तरीका एक प्रकार से सभ्यता की सीढ़ी है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी-अपनी विद्वत्ता और संस्कृति के अनुसार उच्च से उच्च पद पद पर जा सकता है। यूरोप में सर्वत्र ही शक्तिमान की विजय और दुर्बल की मृत्यु है, पर हमारे भारतभूमि में प्रत्येक सामाजिक नियम दुर्बल की रक्षा के लिए बनाए गए है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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