कबीर के दोहे हिन्दी पुस्तक | Kabir ke Dohe Hindi Book PDF

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कबीर के दोहे हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kabir ke Dohe Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : कबीर के दोहे | इस ग्रन्थ मूल के रचनाकार हैं : संत कबीर | इस पुस्तक के संपादक/प्रकाशक हैं : अज्ञात. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 0.3 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 36 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Kabir ke Dohe | This book is originally written by : Sant Kabir | This book is edited/published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is: 0.3 MB. This book has a total of 36 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
संत कबीरभक्ति, धर्म0.3 MB36


पुस्तक से:

सतगुरु लई कमांण करि बाहण लागा तीर, एक जु बाह्या प्रीति सूं भीतर रह्या शरीर || भावार्थ: सदगुरू ने कमान हाथ में ले ली और शब्द के तीर वे लगे चलाने ।"एक तीर तो बड़ी प्रीति से ऐसा चला दिया लक्ष्य बनाकर कि मेरे भीतर ही वह विध गया, बाहर निकलने का नहीं अब | सतगुरु की महिमा अनंत अनंत किया उपगार लोचन अनंत उघाडिया, अनंत- दिखावणहार. अन्त नहीं सद्गुरु की महिमा का और अन्त नहीं उनके किये उपकारों का मेरे अनन्त लोचन खोल दिये, जिनसे निरन्तरमें अनन्त को देख रहा हूँ।

 

बलिहारी गुर आपण चौहाड़ी के बार | जिनि मानिष तें देवता करत न लागी वार || भवार्थ: हर दिन कितनी बार न्यौछावर करू अपने आपको सद्गुरू पर जिन्होंने एक पल में ही मुझे मनुष्य से परमदेवता बना दिया और तदाकार हो गया मैं. 

 

 

'कबीर' सूता क्या करें, काहे न देखे जागि, जाको संग ते वीसुइया ताही के संग लागि. भावार्थ- कबीर अपने आपको चेता रहे हैं, अच्छा हो कि दूसरे भी चेत जायं अरे, सोया हुआ तू क्या कर रहा ? जाग जा और अपने साथियों को देख, जो जाग गये हैं. यात्रा लम्बी है, जिनका साथ बिछड़ गया है और तू पिछड़ गया है उनके साथ तू फिर लग जा.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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