कफन - प्रेमचंद हिन्दी पुस्तक | Kafan-Premchand Hindi Book PDF

                                

Kafan-Premchand-Hindi-Book-PDF

कफन हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kafan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: कफन | इस पुस्तक के लेखक हैं : मुंशी प्रेमचंद |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB हैं | पुस्तक में कुल 6 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Kafan. This book is written by: Munshi Premchand. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 1 MB. This book has a total of 6 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
मुंशी प्रेमचंदकहानी,साहित्य1 MB6



पुस्तक से : 

जब दो-चार फाके हो जाते, घीसू पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ तोड़ लाता और माधव बाजारमें बेच आता और जब तक वे पैसे रहते, दोनों इधर-उधर मारे-मारे फिरते। जब फाके की नौबत आ जाती, तो फिर लकड़ियों तोड़ते या मजदूरी तलाश करते। गांवमें काम की कमी न थी। किसानों का गाँव था, मेहनती आदमी के लिए पचास काम थे मगर इन दोनोंको लोग उसी वक्त बुलाते, जब दो आदमियों से एकका काम पाकर भी सन्तोष कर लेनेके सिवा और कोई चारा न होता। विचित्र जीवन था इनका! घर में मिट्टी के दो-चार बर्तनों के सिवा कोई सम्पत्ति नहीं फटे चीथड़ों से अपनी नग्नताको ढँके हुए जिए जाते थे। संसारकी चिन्ताओं से मुक्त.

 

दोनों आलू निकाल-निकालकर जलते-जलते खाने लगे। कलसे कुछ नहीं खाया। इतना सब्र न था कि उन्हें ठंडा हो जाने दें। कई बार दोनोंकी जबानें जल गई छिल जाने पर आलू का बाहरी हिस्सा तो बहुत ज्यादा गरम न मालूम होता, लेकिन दाँतों के तले पड़ते ही अन्दरका हिस्सा जबान, हलक और तालू को जला देता था और उस अंगारे को मुँह में रखने से ज्यादा खैरियत इसीमें थी कि वह अन्दर पहुँच जाए। वहाँ उसे ठंडा करनेके लिए काफी सामान थे इसलिए दोनों जल्द जल्द निगल जाते। हालाँकि इस कोशिश में उनकी आँखों से आँसू निकल आते।

 

 

जमींदार साहब दयालू थे। मगर घीसू पर दया करना काले कंबल पर रंग चढ़ाना था। जी में तो आया, कह दें चल, दूर हो यहाँ से! यो तो बुलानेसे भी नहीं आता, आज जब गरज पड़ी, तो आकर खुशामद कर रहा है। हरामखोर कहीं का, बदमाश। लेकिन यह क्रोध या दंड का अवसर न था। जी में कुढ़ते हुए दो रुपए निकालर फेंक दिए। मगर सान्त्वनाका एक शब्द भी मुँह से न निकाला। उसकी तरफ ताका भी नहीं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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