काली तंत्र शास्त्र हिन्दी पुस्तक | Kali Tantra Shastra Hindi Book PDF

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काली तंत्र शास्त्र हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kali Tantra Shastra Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: काली तंत्र शास्त्र | इस पुस्तक के लेखक हैं : पंडित राजेश दीक्षित | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 43 MB हैं | पुस्तक में कुल 198 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Kali Tantra Shastra. This book is written by: Pandit Rajesh Dixit. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 43 MB. This book has a total of 198 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित राजेश दीक्षित  भक्ति,धर्म,साधना43 MB198



पुस्तक से : 

भगवती कालीके रूप-भेद असंख्य हैं। तत्त्वतः सभी देवियाँ, योगिनियाँ आदि भगवतीकी ही प्रतिरूपा हैं, तथापि इनके आठ भेद मुख्य माने जाते हैं (१) चिन्तामणि काली, (२) स्पर्शमणि काली, (३) सन्ततिप्रदा काली, (४) सिद्धि -काली (५) दक्षिणा काली, (६) कामकला काली, (७) हंस काली एवं (4) गुह्य काली। 'काली-क्रम-दीक्षा' में भगवती काली के इन्हीं आठ भेदोंके मन्त्र दिए जाते हैं। इनके अतिरिक्त (१) भद्रकाली, (२) श्मशानकाली तथा (३) महाकाली ये तीन भेद भी विशेष प्रसिद्ध हैं तथा इनकी उपासना भी विशेष रूपसे की जाती है। दशमहाविद्याओं के मन्त्रजप ध्यान पूजन तथा प्रयोगकी विधियों कवच स्तोत्र, सहस्रनाम आदि प्रथक्-प्रथक हैं। अतः इन सभी देवियों के सम्बन्ध में हमने प्रथक्-प्रथक् ग्रंथोंका संकलन किया है।

 

'शिव' से जब शक्ति प्रथक् हो जाती है, तो वह 'शव' मात्र रह जाता है अर्थात् जिस प्रकार शिवका अंश स्वरूप जीव-शरीर प्राण रूपी शक्तिं के हट जाने पर मृत्युको प्राप्त होकर 'शव' हो जाता है, उसी प्रकार उपासक जब अपनी प्राणशक्तिको चित् शक्तिमें समाहित कर देता है, तब उसका पच्च भौतिक शरीर 'शव' की भाँति निर्जीव हो जाता है। उस स्थिति में भगवती आद्या शक्ति उसके ऊपर अपना आसन बनाती है अर्थात् उसपर अपनी कृपा बरसाती हैं और उसे स्वयं में सन्निहित कर, भौतिक प्रपच्चों से मुक्त कर देती हैं। यही भगवतीका शवासन है और इसीलिए 'शव' को भगवतीका 'आसन' कल्पित किया गया है।

 

 

'भैरवतन्त्र' के अनुसार कालीदेवीके सभी मन्त्र महामन्त्र हैं। इनके ध्यान मात्रसेही मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। इन मन्त्रों के सम्बन्धमें अरिमित्रादि दोषोंका विचार नहीं किया जाता। जो साधक सर्वसिद्धिदात्री भगवती कालीका ध्यान तथा मन्त्र जप करता है। उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ उपलब्ध होती हैं। वह गद्य-पद्यमय भाषण द्वारा लोगोंको आश्चर्यचकित करदेता है। उसके दर्शनमात्रसे ही शत्रुगण निस्तेज हो जाते हैं तथा राजागण उसकी दासता कर उठते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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