काव्य प्रकाश हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kavya Prakash Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : काव्य प्रकाश | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. पारसनाथ द्विवेदी | पुस्तक का प्रकाशन किया है : विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1.5 GB हैं | पुस्तक में कुल 856 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Kavya Prakash. This book is written by : Dr Parasnath Dwivedi. The book is published by : Vinod Pustak Mandir, Agra. Approximate size of the PDF file of this book is 1.5 GB. This book has a total of 856 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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डॉ. पारसनाथ द्विवेदी | काव्य | 1.5 GB | 856 |
पुस्तक से :
रस सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य भरत को माना जाता हैं, लेकिन राजशेखर ने नन्दिकेश्वर को रस का मूल व्याख्याता बताया है तथा भरत को रूपक का प्रामाणिक आचार्य माना है। यदि राजशेखर का कथन सही है तो संभव है की भरत ने नन्दिकेश्वर के विचारों का आकलन कर उसे व्यवस्थित रूप दिया हो, क्योंकि एक सुनिश्चित सिद्धान्त के रूपमें रस का उपस्थापन भरत नाट्यशास्त्रमें ही उपलब्ध होता है। लेकिन रस का सिद्धान्त भरत से भी प्राचीन है और भरत के नाट्यशास्त्र से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भरत के पूर्व भी रस-मीमांसा की परम्परा रही होगी।
इस प्रकार वामन के अनुसार काव्यमें शोभा के जनक धर्म को गुण कहते हैं और उस शोभा के वर्द्धक धर्मको अलंकार कहते हैं। जैसे युवती के शरीर में सौन्दर्यादि गुणों के होने पर ही अलंकार उसके सौन्दर्य को बढ़ाता हैं उसी प्रकार से काव्य में प्रसादादि गुणों के होने पर ही अलंकार उसकी शोभाको बढ़ाते हैं और प्रसादादि गुणों के न रहने पर अलंकार शोभा वर्धक नहीं हो सकते।
क्षिप्तो हस्तावलग्नः प्रसभमभिहतोऽप्याददानोंऽशुकान्तं गृह्णन् केशेष्वपास्तश्चरणनिपतितो नेक्षितः सम्भ्रमेण ऑलिंगन् योऽवतधूस्त्रिपुरयुवतिभिः साधुनेत्रोत्पलाभिः कामीवर्द्रापराधः स दहतु दुरितं शाम्भवो वः शरग्निः ॥
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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