कुण्डलिनी योग हिन्दी पुस्तक | Kundalini Yoga Hindi Book PDF

                                          

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कुण्डलिनी योग हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kundalini Yoga Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : कुण्डलिनी योग | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. राकेश गिरी | पुस्तक का प्रकाशन किया है : सत्यम पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 48 MB हैं | पुस्तक में कुल 138 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Kundalini Yoga. This book is written by : Dr Rakesh Giri. The book is published by : Satyam Publishing House. Approximate size of the PDF file of this book is 48 MB. This book has a total of 138 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. राकेश गिरीभक्ति,धर्म,योग48 MB138



पुस्तक से : 

योग विद्या का इतिहास बहुत प्राचीन है जो लोग स्वास्थ्य, सौंदर्य, शांति और आत्मदर्शन के अभिलाषी हैं वे योगका अभ्यास अवश्य ही करते हैं। योग एक ऐसी विद्या है, जिसका फल प्रत्यक्ष प्राप्त होता है। वैदिक युगमें ही जब ऋषियों ने ब्रम्ह-विद्या के संबंध में अन्वेषण किया था तभी उन्हें योग विद्याकी आवश्यकता प्रतीत हुई थी। वस्तुतः कुछ विद्वानोंकी मान्यता यह है कि वैदिक मंत्रों की रचना योगके अभ्यास की उच्चतम भूमिकाओंका ही परिणाम है जिसे पतंजलि ने ऋतुंभरा प्रज्ञा कहा है यह ऋतु विश्व के उन प्रथम धर्मोकी संज्ञा है जिससे प्रजापति सृष्टि का विधान करते हैं। समष्टि मन और व्यष्टि मन दोनों उसके ही परिणाम है।

 

इनमें से कुछ सिद्धांत जैसे द्वैतवाद, जीवों की अनेकता, सृष्टि का क्रम आदि अन्य दर्शनोंने नहीं माने, परंतु योग की आचार पद्धति जैसे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान एवं समाधि के संबंधमें किसी भी दर्शन में आपेक्ष,आशंका या सवाल नहीं उठायी गयी। सिद्धांतों के बारेमें चाहे जितनी मतभिन्नता रही हो लेकिन इन आचारों का सभी विचारकों ने समान रूपसे आदर किया। मुक्ति के सर्वोत्तम साधक के रूप में योगके अभ्यास, धारणा, ध्यान आदि सभी पक्षों ने स्वीकार किये।

 

 

वैज्ञानिक मानते थे कि योग में मात्र कुछ चमत्कारों के अलावा और कोई तथ्य है ही नहीं। दूसरी ओर योगी लोगों का कहना था कि योग की प्रक्रियाओं तक योगकी पहुंच नहीं हो सकती। परंतु योग मीमांसा पत्रिका में प्रथम चार-पांच वर्षों में ही योगके क्षेत्र में जो वैज्ञानिक अनुसंधान के लेख छपे, उनसे संसार में सर्वत्र स्वामी जी के नये दृष्टिकोण का स्वागत होने लगा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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