लोक व्यवहार हिन्दी पुस्तक | Lok Vyavahar Hindi Book PDF

                             

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लोक व्यवहार हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Lok Vyavahar Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: लोक व्यवहार | इस पुस्तक के लेखक हैं : संत राम | यह पुस्तक डेल कार्नेगी द्वारा रचित "हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इन्फेलुन्स पीपल" का हिन्दी अनुवाद है. पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 4 MB हैं | पुस्तक में कुल 323 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Lok Vyavahar. This book is written by: Sant Ram. This book is the Hindi translation of the book "How to win friends and influence people" authored by Dale Carnegie. The book is published by: Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 4 MB. This book has a total of 323 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
संत राम  सामाजिक, प्रेरक4 MB323



पुस्तक से : 

यह छोकरा, जिसे आरम्भमें जनता में बोलते समय कोई आधी दर्जन बार नितान्त विफलता हुई थी, बाद को मेरा निजू प्रबंधक बन गया। मेरी सफलताका बड़ा कारण डेल कारनेगी से पाया हुआ प्रशिक्षण या ट्रेनिङ्ग ही है। नवयुषक कारनेगीको विद्याके लिए बड़ा प्रयास करना पड़ा था, क्योंकि भाग्य उसका काम बिगाड़ देता था। प्रति वर्ष नदीमें बाढ आ जानेसे उसकी मक्की डूब जाती थी और चारा बह जाता था। प्रतिवर्ष उसके पाल्तू सुअर बीमार होकर मर जाते थे, पशुओं और खच्चरोंका मूल्य मण्डी में गिर जाता था, और बैंक कुर्की करनेकी धमकी देता था। हतोत्साह होकर कारनेगी-परिवारने अपनी बाड़ी बेच दी और स्टेट टीचर्स कालेजके निकट एक दूसरी खरीद ली।

 

अपनी इस असीम शक्ति और अदम्य उत्साहके रहते भी, वह विशेष उन्नति न कर सका। वह इतना हतोत्साह हुआ कि दोपहरको अपने होटल के कमरेमें जा कर खाट पर लेट गया और निराशाके साथ रुदन करने लगा। वह दुबारा कॉलेनमें चले जाने के लिए लालायित हो उठा, वह जीवनके रूक्ष युद्ध से पीछे हट जाने के लिए तरसने लगा, परन्तु वह ऐसा कर नहीं सकता था। इसलिए उसने ओमाहा नामक एक दूसरे स्थानमें जाकर कोई और काम करनेका निश्चय किया। उसके पास वहाँ जाने के लिए रेलका भाड़ा भी नहीं था। इसलिए उसने एक मालगाड़ीमें यात्रा की।

 

 

कार्लोयल का कथन है कि महापुरूप की महत्ताका पता इस बातसे लगता है कि वह छोटे आदमियों के साथ किस रीति से व्यवहार करता है। लोगोंको बुरा कहने के बजाय, हमें उनको समझनेका यत्न करना चाहिए। हमें यह जाननेकी कोशिश करनी चाहिए कि जो कुछ वे करते हैं वह क्यों करते है। यह आलोचनाकी अपेक्षा कहीं अधिक लाभदायक और गुप्त प्रभाव रखता है। इससे सहानुभूति, सहिष्णुता, और दयालुता उत्पन्न होती है। सबको जानना दूसरे शब्दोंमें सबको क्षमा करना है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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