मेरा जीवन संग्राम - एडोल्फ हिटलर हिन्दी पुस्तक | Mera Jeevan Sangram - Adolf Hitler Hindi Book PDF

                                        

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मेरा जीवन संग्राम हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mera Jeevan Sangram Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : मेरा जीवन संग्राम | इस पुस्तक के लेखक हैं : एडोल्फ हिटलर |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 13 MB हैं | पुस्तक में कुल 364 पृष्ठ हैं |


Name of the book is : Mera Jeevan Sangram. This book is written by : Adolf Hitler. The book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 13 MB. This book has a total of 364 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
एडोल्फ हिटलरजीवनी13 MB364



पुस्तक से : 

सौभाग्यवश मेरा जन्म ब्रौनो शहर की एक पहाड़ी पर हुआ था । यह छोटा शहर उन दो जर्मन राज्यों की सीमा पर बसा हुआ है, जिनका पुनर्गठन करना हम नवयुवकों का एकमात्र लक्ष्य है। जर्मन एवं अस्ट्रिया का एकीकरण आर्थिक समस्या को लेकर नहीं वरन जर्मन मातृभूमि की सेवा के लिये है। इतना ही नहीं, यदि उस एकता को हम आर्थिक दृष्टि से देखें जो कि वास्तव में हानिकारक एवं लज्जाजनक है तथापि जर्मनी-अस्ट्रिया का सम्बन्ध अनिवार्य है। हमारा खून एक है, समयानुसार हमारे स्वार्थ भी एक ही हैं। अपने भाइयों का संगठन कर जर्मन राज्यों में पुनः मैत्री स्थापन किये बिना जर्मनों को उपनिवेश नीति में दखल देने का कोई भी अधिकार नहीं है।

 

प्राचीन अस्ट्रिया में अनेकों स्वातन्त्र्य प्रिय जातियां थीं। मुझे उन दिनों का अभी भी भली भांति ध्यान है जब कि मैने तत्कालीन अस्ट्रिया के एक राजनीतिक आन्दोलन में भाग लिया था। मै उस समय एक स्कूल में पढ़ता था। उस समय मेरी अवस्था १४ या १५ वर्ष की थी । उक्त स्कूल में हमलोगों ने एक बाल-राजनीतिक समिति खोल रखी थी। वह अपने विचारों के लिये प्रमुख मानी जाती थी। हमलोग चेतावनियों और सजा के प्रतिवाद में निन्दा के प्रस्ताव पास करते थे और गाया करते थे कि "उचित न्यायतः मांग हमारी।"

 

 

अपनी इस आत्मकथा के सिलसिले में मुझे इस विषय पर अधिक प्रकाश डालना होगा। यहां पर यह कह देना उचित होगा कि युवावस्था के प्रारम्भ से ही मेरा यह दृढ़ विश्वास हो गया था कि जर्मन जाति की रक्षा के लिये अस्ट्रिया का पतन अवश्यम्भावी है, क्योंकि राष्ट्रीयता के भाव राजभक्ति के परिचायक नहीं हो सकते। मुझे यह भी विदित था कि हैन्सवर्ग राजघराना जर्मन जाति के अस्तित्व को मिटाने के लिये ही पैदा हुआ है। बचपन में ही ये विचार बहुधा मेरे दिमाग को चक्कर डाल दिया करते थे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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